सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि उसने ‘मैला ढोने की कुप्रथा’ को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाए हैं

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न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने हाल ही में इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लिया कि हाथ से मैला ढोने (manual scavenging) और बाढ़ वाली सीवर लाइनों में फंसे लोगों की मौत एक वास्तविकता बनी हुई है।

कोर्ट के मुताबिक शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 और मैला ढोने वाले के रूप में नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and Their Rehabilitation Act, 2013) के तहत हाथ से मैला ढोने वालों को अन्यत्र रोजगार देने के साथ इस कुप्रथा पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी यह जारी है।

प्रमुख तथ्य

सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं इस इस कुप्रथा पर प्रतिबन्ध को लागू किया था और हाथ से मैला ढोने में पारंपरिक रूप से और अन्य तरीके से कार्यरत लोगों के पुनर्वास का निर्देश दिया था।

न्यायमूर्ति भट ने वर्ष 2014 के फैसले के क्रियान्वयन के क्रम में केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण मांगा है। मांगे गए विवरणों में ‘मैनुअल मैला ढोने वालों’ की परिभाषा के भीतर आने वाले लोगों का पुनर्वास, राज्यवार समाप्त कर दिए या तोड़े गए शुष्क शौचालयों की संख्या; शुष्क शौचालयों की स्थिति और सफाई कर्मचारियों के रोजगार; राज्यवार नगर निगमों द्वारा सीवेज सफाई को यंत्रीकृत करने के लिए लगाए गए उपकरणों की प्रकृति; और मुआवजे के भुगतान और परिवारों के पुनर्वास सहित सीवेज से होने वाली मौतों और उनके अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई की ऑनलाइन ट्रैकिंग शामिल हैं।

बता दें कि सफाई कर्मचारी मामले में वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने मैनुअल मैला ढोने वालों के रूप में कार्यरत लोगों को एकमुश्त नकद सहायता, उनके लिए घर, उनके परिवारों के कम से कम एक सदस्य के लिए आजीविका कौशल में प्रशिक्षण और रोजगार, उन्हें आर्थिक रूप से सहारा देने के लिए रियायती ऋण देने का निर्देश दिया था।

निर्णय के तहत सीवर से हुई मौतों के मामले में मुआवजे के तौर पर 10 लाख रुपये देने का निर्देश दिया था। साथ ही रेलवे को “पटरियों पर मैला ढोने की कुप्रथा’ को समाप्त करने के लिए समयबद्ध रणनीति बनाने” का निर्देश दिया गया था।

सरकार द्वारा उठाये गए प्रमुख कदम

जुलाई 2022 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने लोकसभा में जवाब दिया था कि मैला ढोने वाले के रूप में नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 की धारा 2(1) (G) की परिभाषा के हिसाब से हाथ से मैला ढोने (अस्वच्छ शौचालयों से मानव मल को उठाना ) में शामिल होने के कारण कोई मौत नहीं हुई है।

हालांकि, वर्ष 2022 से पीछे तीन वर्षों के दौरान सीवर और सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई के दौरान हुई दुर्घटनाओं में 188 लोगों की मौत हुई थी।

बता दें कि संसद ने “हाथ से मैला ढोने वालों के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013” कानून बनाया था जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 06 दिसंबर 2013 से लागू हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार वर्ष 1993 के बाद से सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मरने वालों के परिवारों को राज्य सरकारों द्वारा 10-10 लाख रुपये का भुगतान किया गया है।

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