राज्य सरकारें भी समान नागरिक संहिता पर कानून बना सकती हैं-कानून मंत्री

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कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने 15 दिसंबर को राज्यसभा को सूचित किया कि समान नागरिक संहिता (UCC) को सुरक्षित करने के अपने प्रयास में राज्यों को पर्सनल लॉ बनाने का अधिकार है जो उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करता है।

मुख्य तथ्य

केंद्रीय मंत्री ने ये टिप्पणी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित जवाब में आया है। पूछा गया था कि क्या केंद्र सरकार को इस तथ्य की जानकारी है कि समान नागरिक संहिता (uniform civil code: UCC) के संबंध में कुछ राज्य अपने स्वयं के कानून बनाने की घोषणा की है।

केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य (स्टेट) को भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का प्रयास करने को कहता है।

वसीयत और उत्तराधिकार; संयुक्त परिवार और विभाजन; विवाह और तलाक जैसे पर्सनल लॉ संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-III-समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 से संबंधित हैं, और इसलिए, राज्यों को भी उन पर कानून बनाने का अधिकार है।

बता दें कि उत्तराखंड राज्य समान नागरिक संहिता की संभावना का पता लगाने के लिए एक पैनल स्थापित करने वाला पहला राज्य था। बाद में गुजरात सरकार ने भी अपने विधानसभा चुनावों से ठीक पहले ऐसा करने की अपनी मंशा की घोषणा की। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए एक समिति गठित की जाएगी।

गौरतलब है कि 9 दिसंबर को सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने समान नागरिक संहिता पर एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया।

राज्य (State) की परिभाषा में क्या शामिल हैं?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के अनुसार, राज्य (State) की परिभाषा में भारत की सरकार और संसद, प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल, भारत के संप्रभु क्षेत्र या भारत सरकार के नियंत्रण के भीतर सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण शामिल हैं।

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