मंत्रियों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर अधिक प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 3 जनवरी को फैसला सुनाया कि सामूहिक जवाबदेही (collective responsibility) के सिद्धांत के होते हुए भी विधायकों और सांसदों सहित किसी मंत्री के व्यक्तिगत बयान को सरकार का बयान नहीं ठहराया जा सकता है।
क्या था मामला ?
- सुप्रीम कोर्ट का उपर्युक्त फैसला कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में आया है , जो 2016 की बुलंदशहर बलात्कार की घटना से संबंधित है।
- उत्तर प्रदेश राज्य के तत्कालीन मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने इस घटना को ‘राजनीतिक साजिश के अलावा कुछ नहीं’ करार दिया था।
- उत्पीड़ित लोगों ने खान के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर की थी।
क्या कहा सर्वोच्च न्यायालय ने?
- जस्टिस एसए नज़ीर की अध्यक्षता वाली और जस्टिस बी आर गवई, ए एस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया।
- शीर्ष न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लिखित प्रतिबंधों को छोड़कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (free speech) के खिलाफ कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।
- शीर्ष अदालत ने कहा कि नागरिकों को अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के उल्लंघन के लिए अदालत में याचिका दायर करने का अधिकार है, लेकिन मंत्री द्वारा दिया गया कोई बयान नागरिकों के अधिकारों के साथ असंगत होने भर से कार्रवाई योग्य नहीं हो जाता।
- हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर एक लोक अधिकारी के बयान से किसी तरह की घटना या अपराध (omission or commission) को बढ़ावा मिलता है, तो इसके खिलाफ उपचार की मांग की जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का मंत्रिपरिषद के सदस्यों पर अनुशासनात्मक नियंत्रण नहीं होता और हमारे जैसे देश में, जहां बहुदलीय व्यवस्था है और जहां अक्सर गठबंधन सरकारें बनती हैं, वहां मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य के द्वारा बयान दिए जाने पर प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री के लिए व्हिप लेना (कार्रवाई करना) हर समय संभव नहीं है।
- वैसे पांच सदस्यीय न्यायाधीशों में बहुमत से अलग राय रखने वाली एकमात्र न्यायाधीश न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि एक मंत्री का बयान, यदि राज्य के किसी भी मामले या सरकार की रक्षा जोड़ा जा सकता है, तब सामूहिक जवाबदेही के सिद्धांत को लागू करके सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, बशर्ते कि ” इस तरह के बयान सरकार के दृष्टिकोण का भी प्रतिनिधित्व करते हैं”।
संविधान का अनुच्छेद 19 (1)(a)
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (a) मीडिया सहित अपने सभी नागरिकों को “वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार” (right to freedom of speech and expression) की गारंटी देता है।
अनुच्छेद 19 का खंड (2) उपर्युक्त अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाता है अर्थात वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पूर्ण नहीं है और कुछ मामलों में इन पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। ये मामले निम्नलिखित हैं:
- a) भारत की संप्रभुता और अखंडत,
- b) राज्य की सुरक्षा,
- c) विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,
- d) सार्वजनिक व्यवस्था,
- e) शालीनता या नैतिकता,
- f) न्यायालय की अवमानना,
- g) मानहानि,
- b) किसी अपराध के लिए उकसाना।