आदिवासी महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में समान अधिकार देने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन किए जाये-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर को केंद्र सरकार से कहा से है कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में संशोधन पर विचार करे, ताकि अनुसूचित जनजाति (ST) की महिला को भी पैतृक संपत्ति में पुरुष समकक्षों के बराबर हिस्सा दिया जा सके।

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब गैर-आदिवासी की बेटी अपने पिता की संपत्ति में समान हिस्से की हकदार है, तो आदिवासी समुदायों की बेटी को इस तरह के अधिकार से वंचित करने का कोई कारण नहीं है।

बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम का एक प्रासंगिक प्रावधान यह बताता है कि उत्तराधिकार का कानून अनुसूचित जनजाति (ST) के सदस्यों पर तब तक लागू नहीं होगा जब तक कि केंद्र सरकार, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, अन्यथा निर्देश न दे।  

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) के अनुसार, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होगा।  

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम तब लागू होता है, जब किसी हिंदू की बिना वसीयत छोड़े ही मौत हो जाती है। इसके बाद उत्तराधिकार कानून के नियमों पर ही निर्भर करता है। 

हिंदू कानून के मिताक्षरा स्कूल को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया था, जो उत्तराधिकार और संपत्ति के उत्तराधिकार को नियंत्रित करता था।  

मिताक्षरा स्कूल के सिद्धांत के मुताबिक ही  हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के मूल कानून में  कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में केवल पुरुषों को ही मान्यता दी जाती थी अर्थात पैतृक संपत्तियों में पुत्रियों को अधिकार नहीं था।

यह कानून  मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी धर्मावलम्बियों को छोड़कर  सभी पर लागू होता है। इस कानून के प्रयोजनों के लिए बौद्ध, सिख, जैन और आर्य समाज, ब्रह्म समाज के अनुयायियों को भी हिंदू माना गया है। अर्थात इन पर यह कानून लागू होता है।

एक हिंदू अविभाजित परिवार में, पीढ़ियों के माध्यम से कई कानूनी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से रह सकते हैं। परंपरागत रूप से, एक साझा पूर्वज के केवल पुरुष वंशजों के साथ-साथ उनकी माताओं, पत्नियों और अविवाहित बेटियों को एक संयुक्त हिंदू परिवार माना जाता है।

कानूनी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से पारिवारिक संपत्ति रखते हैं।

2005 से संशोधन के पश्चात संपत्ति विभाजन में  कोपार्सनर या संयुक्त कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में महिलाओं को भी मान्यता दी गई

पैतृक संपत्ति में पुत्रियों को बराबरी का अधिकार देने के लिये हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 को  वर्ष 2005 में संशोधित किया गया।  इस संशोधन के तहत  एक कोपार्सनर (coparcener) यानी हमवारिस की बेटी को भी जन्म से “उसके अपने अधिकार में पुत्र के रूप में” महत्व दिया गया। कानून ने बेटी को “सहदायिकी (coparcenary) सम्पत्ति में भी वही अधिकार और दायित्व दिए गए हैं जो उसे पुत्र होने पर मिलते”। 

कोपार्सनरी (coparcenary)

एक हिंदू संयुक्त परिवार में एक सामान्य पूर्वज के वंशज होते हैं। दूसरे शब्दों में, एक पुरुष मुखिया और उसके वंशज, जिसमें उनकी पत्नियाँ और अविवाहित बेटियाँ शामिल हैं।

कोपार्सनरी (coparcenary) परिवार की एक छोटी इकाई है जो संयुक्त रूप से संपत्ति का मालिक होती है।

एक कोपार्सनरी में एक ‘प्रपोसिटस’ (propositus) होता है, जिसमें वंश की एक पंक्ति के शीर्ष पर एक व्यक्ति होता है, और उसके तीन वंशज – बेटे, पोते और परपोते शामिल होते हैं।

कोपार्सनरी संपत्ति को इस प्रकार नाम दिया गया है क्योंकि सह-स्वामित्व “अधिकार, स्वामित्व और हित की एकता” (possession, title and interest) द्वारा चिह्नित है।

error: Content is protected !!