बैंकों ने MCLR को 15 बेसिस पॉइंट्स तक बढ़ाया
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में 25 बेसिस पॉइंट्स (bps) की बढ़ोतरी के बाद, कई कर्जदाता संस्थानों ने फंड आधारित उधार दरों (marginal cost of fund-based lending rates: MCLR) की मार्जिनल कोस्ट को 15 बेसिस पॉइंट्स तक बढ़ा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप ऋण लेने वालों को उच्च EMI (equated monthly installment) का भुगतान करना होगा।
MCLR क्या है?
बता दें कि MCLR 1 अप्रैल, 2016 को शुरू किया गया था। MCLR वह न्यूनतम ब्याज दर है जिसके नीचे बैंक उधार नहीं दे सकते।
बैंक MCLR की गणना के लिए फंड की सीमांत लागत (मार्जिनल कोस्ट) के प्रतिशत के रूप में सभी ऑपरेशनल कोस्ट की गणना करते हैं। MCLR व्यवस्था के तहत, बैंक वह ब्याज दर निर्धारित करते हैं जिस पर वे मार्जिनल कोस्ट के आधार पर ऋण मांगने वालों ऋण देते हैं।
मार्जिनल कोस्ट निर्धारित करते समय वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि उन्हें RBI से किस दर से उधार (रेपो) मिल रहा है। इस तरह रेपो रेट (repo rate)- वह दर जिस पर RBI बैंकों को उनकी अल्पकालिक फंडिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए धनउधार देता है – में कोई भी बदलाव उधार लेने वालों के लिए ब्याज दर को प्रभावित करता है।
बैंक अपने बोर्ड से मंजूरी के साथ पूर्व-घोषित तिथि पर हर महीने विभिन्न मैच्यूरिटी के अपनी MCLR की समीक्षा करते हैं। बैंकों की उधार और जमा दरों में रेपो दर के ट्रांसमिशन को और बेहतर बनाने के लिए, अक्टूबर 2019 में RBI ने एक्सटर्नल बेंचमार्क लिंक्ड लेंडिंग रेट (EBLR) प्रणाली की शुरुआत की।
बैंक अब उन दरों पर उधार दरों की पेशकश करते हैं जो RBI की रेपो दर या ट्रेजरी बिलों पर यील्ड से जुड़ी होती हैं। रेपो रेट में कोई भी बदलाव बैंकों की उधार दर में तुरंत परिलक्षित होता है।