ब्रह्मांड के आरंभिक सितारों की बारे में जानने में ‘सारस-3’ की भूमिका
रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के द्वारा स्वदेश में डिजाइन और विकसित ‘शेप्ड एंटीना मेज़रमेंट ऑफ द बैकग्राउंड रेडियो स्पेक्ट्रम’ 3 यानी सारस टेलीस्कोप (Shaped Antenna measurement of the background Radio Spectrum 3: SARAS-3) को 2020 की शुरुआत में उत्तरी कर्नाटक में दंडिगनहल्ली झील और शरावती नदी के पास स्थापित किया गया था।
ब्रह्मांड के आरंभिक सितारों की बारे में जानने में सारस-3 की भूमिका
प्रारंभिक सितारों और आकाशगंगाओं का निर्माण कैसे हुआ और वे कैसे दिखते थे, इस बारे में अपनी जिज्ञासा की वजह से मानव ने ब्रह्मांड की गहराई से उत्पन्न होने वाले बेहद मद्धिम संकेतों को जमीन और अंतरिक्ष- में स्थित आसमान पर लगातार नजर रखने वाली दूरबीनों के माध्यम से पकड़ने की कोशिश की है, जिससे ब्रह्माण्ड को लेकर बेहतर समझ हासिल हो सके।
हाल में वैज्ञानिकों ने बिग बैंग के सिर्फ 20 करोड़ वर्ष, एक अवधि जिसे अंतरिक्षीय प्रभात (Cosmic Dawn) के रूप में जाना जाता है, के बाद बनी चमकदार रेडियो आकाशगंगाओं के गुणों का निर्धारण किया है, जिससे सबसे शुरुआती रेडियो लाउड आकाशगंगाओं जो आमतौर पर बेहद विशाल ब्लैक होल द्वारा संचालित होती हैं, के गुणों के बारे में जानकारी मिली है।
स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित भारत के स्वदेशी टेलिस्कोप सारस 3 ने अंतरिक्षीय प्रभात को लेकर खगोल भौतिकी के बारे में हमारी समझ में सुधार किया है, जिसने हमें यह बताया कि शुरुआती आकाशगंगाओं के भीतर मौजूद गैसीय पदार्थ का 3 प्रतिशत से भी कम हिस्सा सितारों में परिवर्तित हुआ, और यह कि शुरुआती आकाशगंगाएं जो रेडियो उत्सर्जन में उज्ज्वल थीं, एक्स-रे में भी मजबूत थीं, जिसने शुरुआती आकाशगंगाओं में और उसके आसपास ब्रह्मांडीय गैस को गर्म किया।