CITES-COP-19: भारत के आग्रह पर शीशम के व्यापार में छूट

वन्य जीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कवेंशन (CITES) पर पक्षकारों के 19 वें सम्मेलन (COP-19) में भारत के आग्रह पर शीशम (डलबर्जिया सिस्सू/Dalbergia sissoo) के व्यापार में कुछ छूट प्रदान की गयी है। CITES-COP-19 पनामा में आयोजित की जा रही है।

क्या है मामला?

बता दें कि 2016 में जोहान्सबर्ग में CITES-COP-17 में को कन्वेंशन के परिशिष्ट II में जीनस डलबर्जिया (Genus Dalbergia) की सभी प्रजातियों को शामिल किया गया था। इससे डलबर्जिया की सभी प्रजातियों के व्यापार के लिए CITES नियमों का पालन आवश्यक हो गया।

इसे तहत 10 किलो से अधिक वजन की हर खेप के लिए CITES परमिट की आवश्यकता होती है।

इस प्रतिबंध के कारण भारत से डलबर्जिया सिस्सू से बने फर्नीचर और हस्तशिल्प का निर्यात प्रभावित हुआ है। डलबर्जिया सिस्सू उत्पादों के निर्यात में कमी ने प्रजातियों के काम से जुड़े लगभग 50,000 शिल्पकारों की आजीविका को प्रभावित किया है।

भारत में, डलबर्जिया सिस्सू (उत्तर भारत में रोज़वुड या शीशम) प्रजाति बहुतायत में पाई जाती है और इसे एंडेंजर्ड प्रजाति नहीं माना जाता है।

भारत की पहल पर COP-19 बैठक में शीशम (डलबर्जिया सिस्सू) से निर्मित वस्तुओं जैसे फर्नीचर और कलाकृतियों की मात्रा को स्पष्ट करने के प्रस्ताव पर विचार किया गया। हालाँकि परिशिष्ट: II से इसे नहीं हटाया गया परंतु भारतीय प्रतिनिधियों द्वारा निरंतर किये गए विचार-विमर्श के बाद, इस बात पर सहमति बनी कि किसी भी संख्या में डलबर्जिया सिस्सू लकड़ी-आधारित वस्तुओं को बिना CITES- परमिट के शिपमेंट में एकल खेप के रूप में निर्यात किया जा सकता है, यदि इस खेप के प्रत्येक उत्पाद का व्यक्तिगत वजन 10 किलो से कम है।

इसके अलावा, इस बात पर भी सहमति बनी कि प्रत्येक वस्तु के शुद्ध वजन के लिए केवल लकड़ी की मात्रा पर विचार किया जाएगा और उत्पाद में प्रयुक्त किसी अन्य वस्तु जैसे धातु आदि के वजन को नजरअंदाज किया जाएगा।

Dalbergia sissoo भारतीय उपमहाद्वीप, म्यांमार और संभवतः पड़ोसी देशों की नेटिव स्पीशीज है।

(Note: The news has been updated to change डलबर्जिया)

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