नगरपालिका वित्त: रिजर्व बैंक ने वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों की सिफारिश की
भारतीय रिजर्व बैंक ने नगरपालिका वित्त (Municipal Finances) पर एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट सभी राज्यों के 201 नगर निगमों के लिए बजटीय डेटा का संकलन और विश्लेषण करती है।
रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें
रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में नगर निगमों को नगरपालिका बांडों के माध्यम से वैकल्पिक और सस्टेनबल संसाधन जुटाने के तरीकों का पता लगाना चाहिए।
रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा है कि भले ही भारत में नगरपालिका बजट का आकार अन्य देशों की नागपालिकाओं की तुलना में बहुत छोटा है, लेकिन राजस्व में संपत्ति कर संग्रह और केंद्र व राज्य सरकारों से करों और अनुदानों का हस्तांतरण होता है, जिसके परिणामस्वरूप इनके पास वित्तीय स्वायत्तता कम होती है।
नगर निगमों के लिए वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोत
रिपोर्ट में ‘नगर निगमों के लिए वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों’ (Alternative Sources of Financing for Municipal Corporations) पर भी चर्चा की गयी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नगर निगम भारत में बांड के लिए एक अच्छी तरह से विकसित बाजार की अनुपस्थिति में अपने संसाधन की कमी को पूरा करने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों से उधार और केंद्र / राज्य सरकारों से ऋण पर भरोसा करते हैं।
इसलिए, आरबीआई ने कहा है कि नगर निगमों को अपने संसाधनों को बढ़ाने के लिए विभिन्न इनोवेटिव बांड और जमीन-आधारित वित्तपोषण मैकेनिज्म का पता लगाना चाहिए।
यह कहते हुए कि भूमि-आधारित वित्तपोषण एक व्यापक रूप से टैप किया गया एवेन्यू बना हुआ है, आरबीआई ने सुझाव दिया है कि नगर निगमों को खाली भूमि पर कर लगाने; दो तरह के संपत्ति कर-मकानों की तुलना में जमीन के लिए उच्च कर दर; स्टाम्प शुल्क, विकास प्रभाव शुल्क का बंटवारा; लेआउट और मकान निर्माण को मंजूरी देते समय बेटरमेंट और एक्सटर्नल बेटरमेंट शुल्क; और भूमि मुद्रीकरण पर विचार करना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नगर निगमों को विभिन्न प्राप्तियों और व्यय मदों की उचित निगरानी और रिकॉर्ड के साथ पारदर्शी लेखांकन प्रथाओं को अपनाने की जरूरत है। उन्हें ई-सेवाओं के दायरे को बढ़ाना चाहिए और स्थानीय समुदायों के साथ निकट समन्वय में काम करना चाहिए।
74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम-नगरपालिका के राजस्व आधार
बता दें कि 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 की बारहवीं अनुसूची नगरपालिका प्राधिकरणों के फंक्शनल डोमेन का निर्धारण करती है। इस संशोधन अधिनियम ने भारत के संविधान में संबंधित ‘नगरपालिका वित्त सूची’ के लिए प्रावधान नहीं किया है।
वित्त का असाइनमेंट पूरी तरह से राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ दिया गया है, सिवाय इसके कि ऐसा असाइनमेंट ‘कानून द्वारा’ होगा। इसके परिणामस्वरूप सभी राज्यों में नगरपालिका वित्त के पैटर्न में व्यापक रूप से भिन्नता है और नगर स्थानीय निकायों (ULBs) को सौंपे गए कार्यों और अनिवार्य कार्यों के निर्वहन के लिए उन्हें उपलब्ध कराए गए संसाधनों के बीच घोर बेमेल है।
ULBs राजस्व स्रोतों के असाइनमेंट, अंतर-सरकारी हस्तांतरण के प्रावधान और राज्य गारंटी के साथ या बिना उधार लेने के आवंटन के लिए संबंधित राज्य सरकारों पर निर्भर हैं।
संवैधानिक रूप से, कार्यों और वित्त में अंतर्निहित असंतुलन अंततः राज्य सरकारों पर शहरी स्थानीय निकायों की उच्च निर्भरता और केंद्र सरकार पर राज्य सरकारों की उच्च निर्भरता को दर्शाता है।
संविधान का अनुच्छेद 243X राज्य सरकारों को टैक्स , ड्यूटी, टोल और फी लगाने की शक्ति देता है और उन्हें विशिष्ट स्रोतों से शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को राजस्व आवंटित करने की अनुमति देता है।
अनुच्छेद 243Y राज्य वित्त आयोगों (SFC) को (ULB को कर राजस्व और सहायता अनुदान के ट्रांसफर की समीक्षा करने और सिफारिश करने का कार्य सौंपता है। हालांकि, इन प्रावधानों के तहत राजस्व स्रोतों का प्रभावी हस्तांतरण सीमित कर दिया गया है।
नगरपालिका के राजस्व आधार अग्रलिखित हैं:
(a) कर राजस्व, (b) गैर-कर राजस्व, (c) सौंपा गया (साझा) राजस्व, (d) अनुदान सहायता, (e) ऋण और (f ) अन्य रसीदें।
कर राजस्व में शामिल हैं; संपत्ति कर, चुंगी, विज्ञापन कर, पशुओं पर कर, खाली भूमि कर।
गैर-कर राजस्व में शामिल हैं: उपयोगकर्ता शुल्क, नगरपालिका शुल्क, बिक्री और किराया शुल्क, पट्टा राशि।