‘Real Shiv Sena’ dispute: चुनाव आयोग ने मूल राजनीतिक दल के निर्धारण के लिए किस मानदंड को आधार बनाया?

भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने 17 फरवरी को एकनाथ शिंदे गुट को ‘शिवसेना’ नाम और पार्टी का धनुष और तीर का चिह्न आवंटित किया, जिससे इसे मूल पार्टी के रूप में मान्यता मिल गई है।

निर्धारण का तरीका

  • ECI ने वास्तविक राजनीतिक पार्टी निर्धारित करने के लिए “बहुमत के परीक्षण” (test of majority) शर्त पर भरोसा किया और चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत शिंदे गुट को पार्टी के नाम और “धनुष और तीर” के चिह्न आवंटित किया।
  • चुनाव आयोग ने कहा कि उसने अपना निर्णय “बहुमत पर परीक्षण” (test of majority) के आधार पर लिया है क्योंकि एकनाथ शिंदे समूह का समर्थन करने वाले विधायकों के समूह को 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में 55 विजयी शिवसेना उम्मीदवारों के लगभग 76% वोट मिले, जबकि उद्धव ठाकरे गुट को केवल 23.5% वोट मिले।

चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968

  • चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को मान्यता देने और चुनाव चिह्न आवंटित करने का अधिकार देता है।
  • आदेश के अनुच्छेद 15 के तहत, यह प्रतिद्वंद्वी समूहों या किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के समूहों के बीच नाम और चुनाव चिह्न का दावा करने वाले विवादों का फैसला कर सकता है।
  • अनुच्छेद 15 के तहत, चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के बीच विवाद या उनके विलय पर मुद्दों को तय करने का एकमात्र अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने 1971 में सादिक अली और अन्य बनाम ECI मामले में (Sadiq Ali and another vs. ECI) में इसकी वैधता को बरकरार रखा।

तीन मापदंड-सादिक अली केस

  • सादिक अली मामले में कांग्रेस के दो गुटों के बीच उठे विवाद में, चुनाव आयोग ने 1971 में यह तय करने के लिए “बहुमत के परीक्षण” मानदंड पर भरोसा किया था कि किस पक्ष को राजनीतिक दल का नाम और चुनाव चिह्न दिया जाये।
  • तीन में से दो अन्य मानदंड हैं : पार्टी के संविधान का परीक्षण (Test of party constitution) और पार्टी के गठन के उद्देश्य और लक्ष्यों का परीक्षण (Test of Aims and Objectives of the Party Constitution)।
  • इंदिरा गांधी समर्थित गुट को असली कांग्रेस के रूप मान्यता देने के चुनाव आयोग के फैसले को तब सुप्रीम कोर्ट ने 1972 में सही ठहराया था।

आंतरिक लोकतंत्र का अभाव

  • शिवसेना मामले में, चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी को रेखांकित किया और कहा कि अधिकांश विवादों की वजह यही थी।
  • चुनाव आयोग ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत यह आवश्यकहै कि राजनीतिक दलों के पास एक लिखित संविधान हो और इस पर लिखित रिपोर्ट दे कि उसका संविधान लोकतांत्रिक है, आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए है।
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