Maharishi Dayanand Saraswati: महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के समारोह का उद्घाटन
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 12 फरवरी 2023 को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती (200th Jayanti celebrations of Maharishi Dayanand Saraswati) के उपलक्ष्य में साल भर चलने वाले समारोह का उद्घाटन किया। उन्होंने स्मरणोत्सव के लिए एक लोगो भी जारी किया।
दयानंद सरस्वती के बारे में
- दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को टंकारा, गुजरात में “मूल शंकर” के रूप में दर्शनजी लालजी तिवारी और यशोदाबाई के यहाँ हुआ था। मथुरा में, स्वामी विरजानंद ने मूल शंकर को पूरे समाज में वैदिक ज्ञान फैलाने का काम सौंपा और उन्हें ऋषि दयानंद नाम दिया।
- 7 अप्रैल, 1875 को दयानंद सरस्वती ने बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की। यह हिंदू धर्म-समाज सुधार आंदोलन था।
- “वेदों की ओर लौटो” का आह्वान कर वैदिक युग के पश्चात समाज में आयी कुरीतियों को दूर करने हेतु आर्य समाज ने सामाजिक सुधारों और शिक्षा पर जोर देकर देश की सांस्कृतिक और सामाजिक जागृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- उन्होंने मूर्ति पूजा की प्रथा का विरोध किया और उन्हें इसे पुजारियों द्वारा शुरू की गयी कुरीति माना। वह अंधविश्वास और जाति अलगाव जैसी अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ थे।
- आर्य समाज ने 1880 के दशक में विधवा पुनर्विवाह का समर्थन करने के लिए कार्यक्रम शुरू किए।
- महर्षि दयानंद ने बालिकाओं को शिक्षित करने के महत्व को भी रेखांकित किया और बाल विवाह का विरोध किया। उन्होंने स्वराज्य की अवधारणा की वकालत की, जिसका अर्थ है विदेशी प्रभाव से मुक्त देश।
- महर्षि दयानंद ने शुद्धि आंदोलन की शुरुआत लोगों को हिंदू धर्म में वापस लाने के लिए की थी, जो या तो स्वेच्छा से या अनैच्छिक रूप से इस्लाम या ईसाई धर्म जैसे अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए थे।
- सत्यार्थ प्रकाश 1875 की एक पुस्तक है जो मूल रूप से दयानंद सरस्वती द्वारा हिंदी में लिखी गई है।
- परोपकारिणी सभा की स्थापना स्वयं महर्षि ने की थी और यह आज गुरुकुलों एवं प्रकाशनों के माध्यम से वैदिक परंपराओं का प्रचार-प्रसार कर रही है।
- उनकी मान्यताओं, शिक्षाओं और विचारों से प्रेरित होकर, उनके शिष्यों ने 1883 में उनकी मृत्यु के बाद दयानंद एंग्लो वैदिक (DAV) कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी की स्थापना की। पहला DAV हाई स्कूल 1 जून, 1886 को लाहौर में लाला हंस राज के प्रधानाध्यापक के रूप में स्थापित किया गया था।