उत्तर प्रदेश शहरी स्थानीय निकाय चुनाव-क्या है “ट्रिपल टेस्ट” का मामला?
हाल में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण के बिना शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय के मुताबिक स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्गों (OBC) को आरक्षण देने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य की गयी ‘ट्रिपल टेस्ट’ (Triple test) किया जाना जरुरी है लेकिन राज्य सरकार ने इस शर्त को पूरा नहीं किया था।
जस्टिस राम अवतार सिंह आयोग का गठन
अब उत्तर प्रदेश सरकार ने इस उद्देश्य के लिए एक आयोग का गठन किया है। पांच सदस्यीय आयोग यह सुनिश्चित करने के लिए एक सर्वेक्षण करेगा कि OBC को ट्रिपल टेस्ट के आधार पर आरक्षण प्रदान किया जाये, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य किया है।
जस्टिस राम अवतार सिंह को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है।
यह पहली बार है जब उत्तर प्रदेश में ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
ट्रिपल टेस्ट क्या है?
ट्रिपल टेस्ट यानी तिहरा परीक्षण के लिए सरकार को स्थानीय निकायों में OBC को आरक्षण को अंतिम रूप देने के लिए तीन कार्यों को पूरा करने की आवश्यकता होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च, 2021 को विकास किशनराव गावली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में तय किए गए इन ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को रेखांकित किया था।
ट्रिपल टेस्ट/शर्तों (Triple test) के तहत निम्नलिखित कार्य शामिल हैं:
1. स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति और इसके प्रभावों की जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग का गठन करना;
2. आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकायों में आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्धारित करना, ताकि अतिव्याप्ति का उल्लंघन न हो;
3. यह सुनिश्चित करना कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक न हो।