NIOT लक्षद्वीप में ग्रीन और सेल्फ-पॉवर्ड डिसेलिनेशन प्लांट स्थापित करेगा
चेन्नई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) लो-टेंपरेचर थर्मल डिसेलिनेशन (Low Temperature Thermal Desalination: LTTD) तकनीक का उपयोग कर लक्षद्वीप के छह द्वीपों में पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने की अपनी पहल को और स्वच्छ बनाने का निर्णय लिया है ताकि विलवणीकरण प्रकिया को उत्सर्जन मुक्त बनाया जा सके।
नयी पहल के तहत NIOT दुनिया में पहली बार ऐसा विलवणीकरण प्लांट स्थापित कर रहा है जो संयंत्र को चलाने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता समाप्त कर स्वयं उत्पादित स्वच्छ स्रोतों पर निर्भर रहेगा।
गौरतलब है कि लक्षद्वीप स्थित्त वर्तमान संयंत्र समुद्र के लवण युक्त जल बदलकर प्रतिदिन कम से कम 100,000 लीटर पीने योग्य पानी की आपूर्ति करता है। हालाँकि, ये प्लांट डीजल जनरेटर सेट द्वारा चलते हैं।
LTTD के बारे में
LTTD समुद्री सतह पर और समुद्र में लगभग 600 फीट की गहराई पर स्थित जल के तापमान में अंतर (लगभग 15 डिग्री सेल्सियस) का फायदा उठाता है।
नीचे का ठंडा पानी सतह पर पानी को संघनित करता है, जो गर्म होता है लेकिन जिसका प्रेशर वैक्यूम पंपों का उपयोग करके कम किया जाता है। इस तरह का डी-प्रेशराइज्ड पानी आस पास के तापमान पर भी वाष्पित हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप वाष्प जब संघनित होता है तो लवण और दूषित पदार्थों से मुक्त होता है और पीने के लिए उपयुक्त होता है।
जल के दबाव को कम करने के लिए डीजल ईंधन की आवश्यकता पड़ती है क्योकि लक्षद्वीप में ऊर्जा का कोई अन्य स्रोत नहीं है। डीजल को जलाने की वजह से डिसेलिनेशन प्रक्रिया जीवाश्म-ईंधन मुक्त नहीं रह जाती है और प्रदूषण फैलाती है।
यही नहीं, डीजल की भी खपत होती है, भारत की मुख्य भूमि से लाने अधिक खर्च करना पड़ता है। अब NIOT लक्षद्वीप में ही संयंत्र में ऊर्जा भी उत्पादित करेगा जो प्लांट को चलाने के लिए डीजल पर निर्भरता को कम करेगा।
चेन्नई स्थित NIOT पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) का एक संस्थान है।