आर्टेमिस I: ओरियन कैप्सूल ने ‘स्किप एंट्री’ का प्रदर्शन किया

Orion Comes Home to Earth (Image credit: NASA)

नासा का ओरियन कैप्सूल (Orion capsule) 11 दिसंबर को मेक्सिको के बाजा कैलिफ़ोर्निया प्रायद्वीप के पास प्रशांत महासागर में उतरा (splashed down)।

ओरियन कैप्सूल ‘स्किप एंट्री’ (skip entry)

प्रशांत महासागर में ओरियन की लैंडिंग के साथ आर्टेमिस 1 चंद्र मिशन का समापन हुआ। यह लैंडिंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नासा के अपोलो के चंद्रमा पर लैंडिंग के ठीक 50वीं सालगिरह पर हुई है।

ओरियन कैप्सूल ने ‘स्किप एंट्री’ (skip entry) नामक एक नई लैंडिंग तकनीक का भी प्रदर्शन किया, जिसे अंतरिक्ष यान को लैंडिंग साइट पर सटीक रूप से उतरने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

स्किप एंट्री’ के तहत ओरियन ने पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में प्रवेश किया और फिर वायुमंडल और ओरियन की लिफ्ट का उपयोग से वायुमंडल को स्किप करने के लिए उसे बाहर चला गया और पैराशूट और स्प्लैशडाउन के तहत दुबारा वायुमंडल में प्रवेश किया। यह ठीक उसी तरह है जैसे नदी या झील में पत्थर से बचने के लिए छलांग लगायी जाती है।

आर्टेमिस 1 चंद्र मिशन: क्यों महत्वपूर्ण था?

अपने 35 दिनों के मिशन में, ओरियन एक फ्लाई-बाई में चंद्रमा से लगभग 127 किमी ऊपर से गुजरा। ओरियन ने पृथ्वी के वायुमंडल में 40,000 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति से प्रवेश किया जो ध्वनि की गति से 30 गुना अधिक है।

आर्टेमिस 1 एक एक्सपेरिमेंटल मिशन था। इस मिशन का उद्देश्य इस बात की जांच करना था कि क्या इंसानों को चंद्रमा तक पहुंचाने और वापस इन्हें जमीन पर लाने के लिए ओरियन जैसे कैप्सूल पर भरोसा किया जा सकता है।

इस प्रकार, इस पूरे मिशन की सफलता ओरियन कैप्सूल के वायुमंडल में सुरक्षित पुन: प्रवेश पर टिका हुआ था।

आर्टेमिस 1 की सफलता के बाद, अब आर्टेमिस II के तहत कैप्सूल से मानव को चंद्रमा के ओर भेजा जायेगा हालाँकि यह मिशन चन्द्रमा की धरातल पर मानव को नहीं उतरेगा।

आर्टेमिस III मिशन के तहत एक महिला सहित कुछ अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतारने की योजना बनाई गयी है।

आर्टेमिस 1 उन मिशनों की श्रृंखला में पहला है, जो न केवल मनुष्यों को चंद्रमा पर वापस ले जाने की योजना बना रहे हैं, बल्कि वहां लंबे समय तक रहने की संभावनाओं का पता लगाने और डीप स्पेस मिशनों के लिए लॉन्च पैड के रूप में चंद्रमा का उपयोग करने की क्षमता की जांच करने के लिए भी है ताकि भविष्य में चन्द्रमा से ही मंगल ग्रह पर मानव को भेजा जा सकेगा।

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