जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए स्थानीय पहल
जलवायु परिवर्तन को देखते हुए भविष्य में चरम मौसमी घटनाएं बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। इसके प्रभाव अभी भी दिखने लगे हैं। हालाँकि इन आपदाओं से लड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास किये जा रहे हैं, परंतु हकीकत है कि पंचायती राज जैसी स्थानीय सरकारें इस प्रयास में अधिक भूमिका निभा सकती हैं और आपदाओं से लड़ने में स्थानीय समुदाय की प्रथम रक्षा पंक्ति की भूमिका निभा सकती हैं।
इसकी कई वजहें भी हैं।
भारत की अधिकांश आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं और कृषि और अन्य कृषि-आधारित गतिविधियों में शामिल है, जाहिर है की आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित भी वे ही होते हैं, ऐसे में उन्हें क्लाइमेट रेजिलिएंट बनाने से जन और धन की हानि को कम किया जा सकता है। पंचायती राज इसमें भूमिका निभा सकती है।
पंचायती राज संस्थाएं, जो तृतीय स्तर की सरकार है, स्थानीय लोगों के सबसे करीब होती हैं। ऐसे में क्लाइमेट एक्शन प्लान के कार्यान्वयन और प्रवर्तन के लिए स्थानीय सरकारों द्वारा शुरू और समन्वित एक उपयुक्त स्थानीय कार्य योजना का होना आवश्यक है।
पंचायतें जलवायु जोखिमों के लिए प्रभावी रिस्पॉन्स के समन्वय, अनुकूलन को सक्षम करने और जलवायु-परिवर्तन के अनुकूल समुदायों के निर्माण में महत्वपूर्ण और अग्रिम पंक्ति की भूमिका निभा सकती हैं।
वैसे तो पंचायती राज मंत्रालय सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लोकलाइजेशन पर काम कर रहा है परन्तु कई पंचायत अपने स्तर पर भी इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं।
कुछ प्रमुख उदाहरण
कार्बन तटस्थता की अवधारणा के साथ कई पंचायतें आगे आई हैं, इसका एक प्रमुख उदाहरण केरल के वायनाड जिले में मीनांगडी (Meenangadi) ग्राम पंचायत है। 2016 में, पंचायत ने ‘कार्बन न्यूट्रल मीनांगडी’ नामक एक परियोजना की परिकल्पना की, जिसका उद्देश्य मीनांगडी को कार्बन तटस्थता की स्थिति में बदलना है। कार्बन न्यूट्रल गतिविधियों में सहायता के लिए ‘ट्री बैंकिंग’ की शुरुआत की गई थी। स्थानीय आर्थिक विकास एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र था जहां एलईडी बल्ब निर्माण और संबंधित सूक्ष्म उद्यम शुरू किए गए थे।
जम्मू और कश्मीर में पल्ली ग्राम पंचायत ने विशिष्ट स्थानीय गतिविधियों के साथ समान जन-केंद्रित मॉडल का पालन किया है। पंचायत ने एक क्लाइमेट रेजिलिएंस योजना तैयार की है जहां ग्रामीणों को जलवायु परिवर्तन के मिटिगेशन कारकों जैसे ऊर्जा की खपत को कम करने, जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कटौती, सौर ऊर्जा के उपयोग, प्लास्टिक को त्यागने और वृक्षारोपण और जल संरक्षण उपायों को बढ़ावा देने के बारे में जागरूक बढ़ाने को प्रमुखता दी गई।
तमिलनाडु में ओदनथुराई पंचायत की अपनी पवनचक्की (350 किलोवाट) है।
महाराष्ट्र में टिकेकरवाडी ग्राम पंचायत बायोगैस संयंत्रों और हरित ऊर्जा उत्पादन के व्यापक उपयोग के लिए प्रसिद्ध है।
(Source: The Hindu)