वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट 2023: ग्लोबल साउथ सेंसिटिव मॉडल का प्रस्ताव
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 13 जनवरी, 2023 को वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (Voice of Global South Summit) के समापन सत्र को वर्चुअल मोड में संबोधित किया।
भारत के सक्षम नेतृत्व में शुरू किया गया, अपनी तरह के इस प्रथम शिखर सम्मेलन का उद्देश्य वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) में उन देशों के हितों और चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करना हिअ, जिनकी आवाज अक्सर अनसुनी कर दी जाती है।
- प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि विकासशील देश एक ऐसा वैश्वीकरण चाहते हैं जो वैक्सीन के असमान वितरण या आपूर्ति श्रृंखलाओं के केन्द्रीकरणकी ओर न ले जाए।
- उन्होंने कहा कि विकासशील देश ऐसा वैश्वीकरण चाहते हैं जो जलवायु या ऋण संकट पैदा नहीं करता हो बल्कि समग्र रूप से मानवता की समृद्धि और भलाई लाता है।
- इससे पहले, विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट के विदेश मंत्रियों के सत्र को ‘वैश्विक दक्षिण की प्राथमिकताएं- एक अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करना’ (Priorities of Global South- Ensuring a Conducive Environment) विषय के तहत संबोधित किया।
भारत का पक्ष
- विदेश मंत्री ने भारत का पक्ष रखते हुए कहा कि यह विश्व ग्लोबल साउथ के लिए तेजी से अस्थिर और अनिश्चित होती जा रही है। इसलिए, वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यह विकासशील देशों को अपनी चिंताओं, दृष्टिकोणों और प्राथमिकताओं को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
- भारत ‘ग्लोबल साउथ सेंसिटिव’ (Global South sensitive) मॉडल के मामले में 3 संवेदनशील बदलावों के पक्ष में है। इन बदलावों में (1) आत्म-केंद्रित वैश्वीकरण से मानव-केंद्रित वैश्वीकरण की ओर कदम रखना, (2) पाश्चात्य तकनीकी प्रभुत्व के अंतिम उपभोक्ता की जगह सामाजिक बदलाव के लिए ग्लोबल साउथ के नेतृत्व में विकसित इनोवेशंस का उपयोग करना और (3) कर्ज बोझ बढ़ाने वाली परियोजनाओं की जगह मांग-संचालित और सतत विकास सहयोग आधारित परियोजनाओं को प्राथमिकता देना शामिल हैं।
क्या है ग्लोबल साउथ?
- सबसे पहले 1969 में प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता कार्ल ओल्स्बी द्वारा गढ़ा गया, ग्लोबल साउथ टर्म वस्तुतः विकासशील देशों, कम-विकसित देशों, अविकसित देशों, कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं, या तथाकथित-थर्ड वर्ल्ड देश जैसे शब्दों का पर्याय है।
- ग्लोबल साउथ भौगोलिक क्षेत्र का सूचक नहीं है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया दक्षिणी गोलार्ध में होने के बाद भी ग्लोबल साउथ देशों में शामिल नहीं है।