कोरोनिविया जॉइंट वर्क ऑन एग्रीकल्चर (KJWA)

भारत ने 17 नवंबर 2022 को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के एक विशेष पहल “कृषि के लिए कोरोनिविया संयुक्त कार्य” (Koronivia Joint Work on Agriculture: KJWA) के तहत चर्चाओं पर कड़ी आपत्ति जताई। KJWA कृषि क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों का विस्तार करने की मांग की है।

क्या है भारत का तर्क?

  • भारत ने कहा कि कृषि गतिविधियों से उत्सर्जन “विलासिता” का परिणाम नहीं हैं बल्कि गरीबों के “अस्तित्व” से जुड़ी गतिविधि से संबंधित उत्सर्जन हैं।
  • भारत का यह भी कहना है कि विकसित देशों द्वारा अत्यधिक ऐतिहासिक संचयी उत्सर्जन के कारण आज दुनिया जलवायु संकट का सामना कर रही है। ये देश अपने जीवन शैली में किसी सार्थक बदलाव से अपने उत्सर्जन को घरेलू स्तर पर कम करने में असमर्थ हैं। इसके बल्कि वे दूसरे देशों में जलवायु परिवर्तन से निपटने का सस्ता समाधान खोज रहे हैं।

कोरोनिविया जॉइंट वर्क ऑन एग्रीकल्चर (KJWA) क्या है?

  • कोरोनिविया जॉइंट वर्क ऑन एग्रीकल्चर (KJWA) जलवायु परिवर्तन से निपटने में कृषि की यूनिक क्षमता को स्वीकार करने वाला एक निर्णय है।
  • KJWA की स्थापना 2017 में फिजी की अध्यक्षता में जर्मनी के बॉन में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) पर पक्षकारों के 23वें सम्मेलन (COP) में कृषि पर चर्चा को आगे बढ़ाने की एक नई प्रक्रिया के रूप में की गई थी।
  • यह सहमति प्रदान करने वाले देशों को यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम करने का आह्वान करता है कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुस इस तरह से कृषि विकास को बढ़ावा दिया जाये जो खाद्य सुरक्षा में वृद्धि तो करे ही, साथ ही उत्सर्जन में कमी भी सुनिश्चित करे।
  • KJWA कृषि के छह घटकों पर बल देता है; मृदा, पोषक तत्वों के उपयोग, जल, पशुधन, अनुकूलन का आकलन करने के तरीके, और जलवायु परिवर्तन के सामाजिक-आर्थिक और खाद्य सुरक्षा आयाम।

कृषि सेक्टर- ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन

  • कृषि सेक्टर फसलों और पशुधन गतिविधियों द्वारा फार्म गेट के भीतर उत्पन्न गैर-CO2 उत्सर्जन के साथ-साथ प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के रूपांतरण के कारण होने वाले CO2 उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।
  • कृषि गतिविधियाँ विभिन्न तरीकों से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में योगदान करती हैं।
  • कृषि मृदा पर विभिन्न प्रबंधन प्रथाओं से मिट्टी में नाइट्रोजन की उपलब्धता में वृद्धि हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) का उत्सर्जन होता है। विशिष्ट गतिविधियाँ जो कृषि भूमि से N2O उत्सर्जन में योगदान करती हैं, उनमें सिंथेटिक और जैविक उर्वरकों का उपयोग, नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलों की वृद्धि, जैविक मृदा की जल निकासी और सिंचाई पद्धतियाँ शामिल हैं।
  • पशुधन, विशेष रूप से जुगाली करने वाले जैसे मवेशी, अपनी सामान्य पाचन प्रक्रियाओं के हिस्से के रूप में मीथेन (CH4) का उत्पादन करते हैं। इस प्रक्रिया को एंटेरिक किण्वन कहा जाता है, और यह कृषि आर्थिक क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन के एक चौथाई से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है।
  • जिस तरह से पशुधन से खाद का प्रबंधन किया जाता है वह CH4 और N2O उत्सर्जन में भी योगदान देता है।
  • विभिन्न खाद उपचार और भंडारण के तरीके इस बात को प्रभावित करते हैं कि इन ग्रीनहाउस गैसों का कितना उत्पादन होता है।
  • कृषि उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में चूने और यूरिया के प्रयोग से CO2, चावल की खेती से CH4, और फसल अपशिष्टों को जलाने से CH4 और N2O का उत्सर्जन शामिल है।
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