भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC) द्वारा ‘भारत के भूस्खलन एटलस’ के अनुसार, भूस्खलन मुख्य रूप से भारी वर्षा और भूकंप जैसे प्राकृतिक ट्रिगरिंग कारकों या सड़कों, इमारतों और खनन और निर्माण जैसी मानवजनित गतिविधियों के कारण पहाड़ियों की ढलान पर होता है।
NRSC द्वारा मैप किए गए भूस्थानिक भूस्खलन सूची डेटाबेस ने 1998-2022 के दौरान भारत में लगभग 80,000 भूस्खलन की सूचना दी है।
अधिकांश भूस्खलन जून और सितंबर के बीच होते हैं।
भारत में, बर्फ से ढके क्षेत्र को छोड़कर 0.42 मिलियन वर्ग किमी (12.6 प्रतिशत) भूमि क्षेत्र भूस्खलन के खतरे से ग्रस्त है। इसमें से 0.18 मिलियन वर्ग किमी क्षेत्र उत्तर पूर्व हिमालय में है। अन्य 0.14 मिलियन वर्ग किमी उत्तर पश्चिम हिमालय में पड़ता है। पश्चिमी घाट और कोंकण पहाड़ियों में लगभग 0.09 मिलियन वर्ग किमी भूमि क्षेत्र भूस्खलन से ग्रस्त है। आंध्र प्रदेश के अरुकु क्षेत्र के पूर्वी घाट में लगभग 0.01 मिलियन वर्ग किमी क्षेत्र भी भूस्खलन से ग्रस्त है।
यह डेटाबेस हिमालय और पश्चिमी घाट में 17 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के भूस्खलन-संवेदनशील क्षेत्रों (landslide-vulnerable regions) को कवर करता है।
उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला भारत में सबसे अधिक भूस्खलन घनत्व वाला जिला है।
जिलों की संख्या के आधार पर, इस रैंकिंग में अरुणाचल प्रदेश में अधिकतम 16 जिले हैं, इसके बाद केरल और जम्मू और कश्मीर में 14-14 जिले हैं। उत्तराखंड में 13 जिले भूस्खलन के प्रति संवेदनशील हैं।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य तथा जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश भूस्खलन आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं क्योंकि संवेदनशील क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा हिमालय में आता है।
हालांकि पूर्वोत्तर राज्यों में हर साल कई भूस्खलन होते हैं, लेकिन कम जनसंख्या घनत्व और बड़े खाली पहाड़ी क्षेत्रों के कारण सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से विशेष रूप से इसके प्रति संवेदनशील नहीं हैं। वहीं पश्चिमी घाट में बहुत अधिक जनसंख्या और अधिक घनत्व के कारण निवासियों और परिवारों को अधिक खतरा होता है, खासकर केरल में, भले ही हिमालयी क्षेत्रों की तुलना में यहां कम भूस्खलन होता हो।