चुनावी हलफनामे में शैक्षिक योग्यता के बारे में झूठा दावा, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार ‘भ्रष्ट आचरण’ नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 20 फरवरी को कहा कि किसी चुनाव में हलफनामा में किसी उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी प्रदान करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (2) और धारा 123 (4) के तहत “भ्रष्ट आचरण” (corrupt practice) नहीं माना जा सकता है।

  • शीर्ष अदालत ने कहा कि भारत में कोई भी मतदाता किसी उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता के आधार पर वोट नहीं देता है। इसलिए सदस्यता रद्द करने का यह आधार नहीं हो सकता।

प्रमुख तथ्य

  • जस्टिस के.एम. जोसेफ और बीवी नागरत्ना की खंडपीठ वाली सुप्रीम कोर्ट ने “अनुग्रह नारायण सिंह बनाम हर्षवर्धन बाजपेयी” मामले में में 2017 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई की। इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भाजपा विधायक के चुनाव को “शून्य” घोषित करने की याचिका को खारिज कर दिया गया था। इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी।
  • हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

क्या है जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123?

  • अधिनियम की धारा 123 रिश्वतखोरी, अनुचित प्रभाव, झूठी सूचना, और चुनाव में अपनी जीत की संभावना को बढ़ाने के लिए धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, भाषा के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच “दुश्मनी या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने या सहारा लेने को “भ्रष्ट आचरण” (corrupt practice) के रूप में परिभाषित करती है। ।
  • धारा 123 (2) ‘अनुचित प्रभाव’ (undue influence) से संबंधित है जिसे यह “उम्मीदवार या उसके एजेंट, या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से उम्मीदवार या उसके चुनाव एजेंट की सहमति से किसी व्यक्ति के स्वतंत्र रूप से मतदान करने के अधिकार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने का प्रयास” के रूप में परिभाषित करती है। इसमें हमले की धमकी, सामाजिक बहिष्कार और किसी जाति या समुदाय से निष्कासन भी शामिल हो सकता है।
  • एक उम्मीदवार या एक मतदाता को विश्वास दिलाना कि वे “ईश्वरीय नाराजगी या आध्यात्मिक निंदा की वस्तु” बन जाएंगे, को “ऐसे उम्मीदवार या मतदाता के चुनावी अधिकार के स्वतंत्र उपयोग के साथ” हस्तक्षेप माना जाएगा।
  • धारा 123 (4) ऐसे झूठे बयानों के जानबूझकर प्रकाशन को भी “भ्रष्ट आचरण” के दायरे में शामिल करती है है जो उम्मीदवार के चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकती है।
  • अधिनियम के प्रावधानों के तहत, एक निर्वाचित प्रतिनिधि को अयोग्य ठहराया जा सकता है अगर वह अग्रलिखित अपराधों का दोषी पाया जाता है; भ्रष्ट आचरण के आधार पर; चुनाव खर्च घोषित करने में विफल रहने पर; और सरकारी अनुबंधों या कार्यों में उसके अपने हित सिद्ध होने पर।
  • वर्ष 2017 में, सुप्रीम कोर्ट की सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने “अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन” (Abhiram Singh v C.D. Commachen) मामले में निर्णय दिया कि धारा 123 (3) के अनुसार अगर उम्मीदवार के धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के नाम पर वोट मांगे जाते हैं तो उसके निर्वाचन रद्द कर दिया जाएगा।
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