Lightning: राज्यों ने आकाशीय बिजली को प्राकृतिक आपदा घोषित करने की मांग की
कुछ राज्यों ने मांग की है कि “आकाशीय बिजली” (lightning) को “प्राकृतिक आपदा” (natural disaster) घोषित किया जाए क्योंकि इससे होने वाली मौतें देश में किसी भी अन्य आपदा से अधिक होती हैं।
प्रमुख तथ्य
वर्तमान मानदंडों के अनुसार, चक्रवात, सूखा, भूकंप, आगजनी, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीटों का हमला, पाले और शीतलहर को प्राकृतिक आपदा माना जाता है और इन्हें राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF: State Disaster Response Fund (SDRF) के तहत कवर किए जाते हैं, जिसका 75 % केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है।
विशेषज्ञों के अनुसार, बिजली गिरने को “प्राकृतिक आपदा” घोषित करने से इससे होने वाली मौतों में कमी आएगी। इससे राज्यों को स्थानीय एजेंसियों के साथ समन्वित प्रयासों और आपदा-प्रतिरोधी इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए पुनर्निर्माण गतिविधियों के माध्यम से दीर्घकालिक मिटिगेशन तैयार करने में मदद मिलेगी।
बता दें कि ओडिशा सरकार SDRF से प्रत्येक मृतक व्यक्ति के परिजनों को 4 लाख रुपये की राशि प्रदान करती है। अन्य राज्य सरकारें मृत व्यक्ति के परिवार को एकमुश्त अनुग्रह राशि प्रदान करती हैं। हालांकि ये नीतियां बिजली गिरने से होने वाली मौतों को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार बिजली गिरने से हर साल करीब 2,500 लोगों की मौत होती है।
बिजली गिरने की आवृत्ति पूर्वोत्तर राज्यों और पश्चिम बंगाल, सिक्किम, झारखंड, ओडिशा और बिहार में सबसे अधिक थी, लेकिन मरने वालों की संख्या मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में अधिक थी।
विभिन्न क्षेत्रों में बिजली गिरने की अलग-अलग विशेषताएं हैं। जैसे- पहाड़ी राज्यों में रात में और सुबह के शुरुआती घंटों में बिजली गिरने की अधिक घटनाएं देखी जाती हैं जबकि मैदानी इलाकों में दिन की अवधि में बिजली गिरने की अधिक घटनाएं देखी जाती हैं। इसलिए मैदानी इलाकों में बिजली गिरने से मौतें ज्यादा होती हैं।
किसान सबसे अधिक प्रभावित होते हैं और बारिश के मौसम में मरने वालों की संख्या अधिक होती है।
भारत दुनिया के केवल पांच देशों में से एक है, जिसके पास बिजली गिरने की पूर्व चेतावनी प्रणाली है। यह चेतावनी पांच दिन पहले से लेकर तीन घंटे पहले तक उपलब्ध होते हैं।
मानव जीवन के नुकसान के अलावा, बिजली गिरने से कृषि, विमानन, बिजली प्रणाली और संचार क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मुख्य रूप से, ग्रामीण और वन क्षेत्र, जल निकायों और ऊंचे पेड़ों के मौजूद होने के कारण बिजली गिरने के प्रति अधिक वल्नरेबल होते हैं।