दिवाली सप्ताह के दौरान 20 वर्षों में पहली बार करेंसी इन सर्कुलेशन (CIC) में गिरावट

भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी रिपोर्ट Ecowrap में कहा है कि पिछले 20 वर्षों में पहली बार दिवाली सप्ताह के दौरान करेंसी इन सर्कुलेशन (CIC) में 7,600 करोड़ रुपये की गिरावट आई है। SBI के ने कहा कि यह देश में डिजिटल लेनदेन में वृद्धि के कारण है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक संरचनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है।

एसबीआई रिसर्च द्वारा एकत्र किए गए साप्ताहिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में 440 अरब रुपये और 2020 में 438 अरब रुपये की वृद्धि के मुकाबले 2022 में नकद लेनदेन में 76 अरब रुपये की गिरावट आई है।

वर्ष 2002 के बाद यह पहली बार है कि दिवाली सप्ताह के दौरान करेंसी इन सर्कुलेशन में गिरावट आई, हालांकि 2009 में 9.5 अरब रुपये की मामूली गिरावट आयी थी परन्तु उसकी वजह आर्थिक मंदी थी।

रिपोर्ट ने सरकार को अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने और डिजिटल बनाने के लिए सरकार द्वारा अथक प्रयास के कारण डिजिटल यात्रा की सफलता का श्रेय दिया।

UPI, वॉलेट और पीपीआई जैसी इंटरऑपरेबल भुगतान प्रणालियों ने डिजिटल रूप से कैश ट्रांसफर करना आसान और सस्ता बना दिया है, यहां तक ​​कि उन लोगों के लिए भी जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं। इन वर्षों में, क्यूआर कोड, एनएफसी आदि जैसे नए इनोवेशंस के साथ सिस्टम का तेजी से विस्तार हुआ है और इस उद्योग में बड़ी तकनीकी फर्मों के तेजी से एंट्री भी हुई है।

यदि लैटेस्ट रिटेल डिजिटल लेनदेन डेटा देखें, तो वैल्यू के संदर्भ में NEFT की हिस्सेदारी 55% है और अधिकांश लेनदेन या तो शाखा में या इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से किए जाते हैं।

हालाँकि, अगर केवल UPI, IMPS और ई-वॉलेट जैसे स्मार्ट फोन के माध्यम से किए गए लेनदेन को देखें, तो उनकी हिस्सेदारी क्रमशः लगभग 16%, 12% और 1% है। इसलिए, UPI/ई-वॉलेट के माध्यम से किए गए छोटे रिटेल पेमेंट भुगतान उद्योग में लगभग 11-12% हैं।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, कुल पेमेंट सिस्टम में, डिजिटल लेनदेन को IMPS, UPI और PPI में लेनदेन के रूप में परिभाषित किया है; जबकि CIC के रूप में नकद लेनदेन को।

ट्रेंड के अनुसार पेमेंट सिस्टम में CIC की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2016 के 88% से घटकर वित्त वर्ष 2022 में 20% हो गयी और वित्त वर्ष 27 में 11.15% तक नीचे जाने का अनुमान है।

नतीजतन, डिजिटल लेनदेन का हिस्सा वित्त वर्ष 2016 में 11.26% से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 80.4% हो गया है और वित्त वर्ष 27 में 88% को पहुंचने की उम्मीद है।

रिपोर्ट के अनुसार यह आरबीआई और सरकार, दोनों के लिए जीत है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप सिग्नोरेज लागत (seignorage costs) की बचत होती है और कम कैश वाली अर्थव्यवस्था की ओर भी कदम है। सिग्नोरेज करेंसी/मनी की वैल्यू और इसे छपने की लागत के बीच का अंतर है।

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