सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट टाइगर की तर्ज पर ‘प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ शुरू करने का सुझाव दिया
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की तर्ज पर ‘प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Project Great Indian Bustard)’ लॉन्च किया जा सकता है। शीर्ष अदालत इंडेंजर्ड पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) की रक्षा के लिए एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
बता दें कि 1973 में भारत के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) को एक बड़ी सफलता के रूप में गईं जाता है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड: खतरा एवं संरक्षण उपाय
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात में पाया जाता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को क्रिटिकली इंडेंजर्ड के रूप में लाल सूची में वर्गीकृत किया है।
GIB घास के मैदानों को अपने हैबिटेट के रूप में पसंद करते हैं। स्थलीय पक्षी अपना अधिकांश समय जमीन पर व्यतीत करते हैं और कीड़ों, छिपकलियों, घास के बीजों आदि का भोजन करते हैं।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को घास के मैदान की फ्लैगशिप पक्षी प्रजाति माना जाता है और इसलिए चरागाह पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के बैरोमीटर माने जाते हैं। “अम्ब्रेला” या “फ्लैगशिप” प्रजातियाँ (flagship” species) ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनके संरक्षण को अन्य, असंबंधित प्रजातियों या समुदायों के संरक्षण के साथ सकारात्मक रूप से सहसंबंधित माना जाता है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए सबसे बड़े खतरों में ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनें हैं। सामने से उनकी खराब दृष्टि के कारण, पक्षी दूर से विद्युत लाइनों को नहीं देख सकते हैं, और पास आने पर दिशा नहीं बदल पाते क्योंकि उनका वजन काफी भारी होता है। इस प्रकार, वे केबलों से टकराते हैं और मर जाते हैं।
भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के अनुसार, राजस्थान में हर साल 18 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ओवरहेड बिजली लाइनों से टकराने के बाद मर जाते हैं।
अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राजस्थान और गुजरात में कोर और संभावित GIB हैबिटैट में सभी ओवरहेड बिजली पारेषण लाइनों को भूमिगत किया जाना चाहिए।
कृषि विस्तार, बुनियादी ढाँचे के विकास और शिकार के कारण बस्टर्ड की आबादी में भारी गिरावट देखी गई है। संरक्षित क्षेत्रों के बाहर भी कभी-कभी पक्षियों का शिकार किया जाता है।
जहां भारत में GIB का शिकार प्रतिबंधित है, वहीं पाकिस्तान में इसके मांस के लिए इसे मार दिया जाता है।
वर्ष 2015 में, केंद्र ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रजाति रिकवरी कार्यक्रम शुरू किया था। इसके तहत, WII और राजस्थान वन विभाग ने संयुक्त रूप से प्रजनन केंद्र स्थापित किए जहां ग्रेट इंडियन बस्टर्ड अंडे कृत्रिम रूप से प्राप्त किये गए थे।
भारत में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए उपाय
वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में इसके प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। यह अधिनियम किसी भी उपकरण, वाहन या हथियार को जब्त करने का भी प्रावधान करता है जिसका उपयोग वन्यजीव अपराध करने के लिए किया जाता है। भारत में पाई जाने वाली दुर्लभ और इंडेंजर्ड प्रजातियों जैसे बाघ, हिम तेंदुआ, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, गंगा डॉल्फिन, डुगोंग आदि को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध किया गया है, जिससे उन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान की गई है।
इंडेंजर्ड प्रजातियों और उनके हैबिटेट सहित वन्यजीवों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण हैबिटेट को शामिल करते हुए देश में संरक्षित क्षेत्र, जैसे राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिजर्व और सामुदायिक रिजर्व बनाए गए हैं।
वन्य जीवन के बेहतर संरक्षण और हैबिटेट में सुधार के लिए ‘वन्यजीव आवासों के एकीकृत विकास’ (Integrated Development of Wildlife Habitats) नामक केंद्र प्रायोजित योजना के तहत राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत, 11 वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान ‘क्रिटिकली इंडेंजर्ड प्रजातियों और उनके हैबिटेट के लिए पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम’ शुरू करने के लिए एक नया घटक जोड़ा गया है।
स्थानीय समुदाय पर्यावरण-विकास गतिविधियों के माध्यम से संरक्षण उपायों में शामिल हैं जो वन्यजीवों के संरक्षण में वन विभागों की मदद करते हैं।
वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (WCCB) वन्यजीवों और जानवरों के अवैध शिकार और अवैध व्यापार के बारे में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करता है।
प्रोजेक्ट टाइगर
भारत सरकार ने बाघ के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए 1 अप्रैल 1973 को “प्रोजेक्ट टाइगर” लॉन्च किया था। प्रोजेक्ट टाइगर दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी प्रजाति संरक्षण पहल रही है।
परियोजना का फील्ड कार्यान्वयन, नामित रिजर्व में संरक्षण और प्रबंधन परियोजना राज्यों द्वारा किया जाता है, जो अनुदान साझा करते हैं, फील्ड स्टाफ/अधिकारियों को तैनात करते हैं, और उनके वेतन देते हैं।
पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत प्रोजेक्ट टाइगर निदेशालय को तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करने का कार्य सौंपा गया है।
केंद्र प्रायोजित योजना प्रोजेक्ट टाइगर के तहत वित्त पोषण सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने के लिए अनुग्रह राशि और कर्मचारियों की क्षमता निर्माण शामिल है।
प्रोजेक्ट टाइगर को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में वर्ष 2006 में संशोधन के माध्यम से सक्षम प्रावधान प्रदान करके एक वैधानिक प्राधिकरण “राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण” (NTCA) में परिवर्तित कर दिया गया है।
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