केरल के राज्यपाल ने ‘प्रसादपर्यन्त’ वापस लेकर मंत्री को हटाने की धमकी की
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammed Khan) ने 19 अक्टूबर को उन मंत्रियों को बर्खास्त करने की धमकी दी जिन्होंने उनके कार्यालय की “गरिमा को कम” किया है।
आरिफ मोहम्मद खान के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक बयान में कहा गया, “मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद को राज्यपाल को सलाह देने का पूरा अधिकार है। लेकिन व्यक्तिगत मंत्रियों के बयान जो राज्यपाल के पद की गरिमा को कम करते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है और प्रसादपर्यन्त (pleasure) वापस ली जा सकती है।”
राज्यपाल-प्रसादपर्यन्त सिद्धांत (pleasure doctrine)
संविधान के अनुच्छेद 153-161 में राज्यपाल की स्थिति, भूमिका, शक्तियाँ और पद की शर्तों का वर्णन किया गया है। राज्यपाल की स्थिति संघ में राष्ट्रपति के समान होती है।
राज्यपाल, राज्य कार्यपालिका का प्रधान होता है, और कुछ मामलों को छोड़कर, मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है।
राज्यपालों द्वारा मुख्यमंत्रियों को बर्खास्त करने के कई उदाहरण हैं, लेकिन वे संवैधानिक संकटों से संबंधित थे जब मंत्रिमंडल अपना बहुमत खो दिया था।
राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और इसलिए, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
राज्यपाल को कुछ शक्तियाँ प्राप्त हैं जैसे कि राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को स्वीकृति देना या रोके रखना, राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखना, राष्ट्रपति शासन के लिए सिफारिश करना या किसी पार्टी को अपना बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक समय का निर्धारण करना – या ऐसा करने के लिए किस पार्टी को पहले बुलाया जाना चाहिए।
अनुच्छेद 164(1) कहता है कि राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त मंत्री पद धारण करेंगे।
कुछ संवैधानिक विशेषज्ञों के अनुसार, प्रसादपर्यन्त सिद्धांत (pleasure doctrine) केवल संवैधानिक अर्थ में मौजूद है, और राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर ही इसका प्रयोग किया जाता है। दूसरे शब्दों में, मंत्रिपरिषद से एक मंत्री को हटाने के लिए मुख्यमंत्री की शक्ति को संदर्भित करने के लिए ‘राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त सिद्धांत’ (pleasure doctrine exists only in a constitutional sense) शब्द का प्रयोग एक व्यंजना के रूप में किया जाता है।
शमशेर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य/Shamsher Singh & Anr vs State Of Punjab (1974) मामले में, सुप्रीम कोर्ट की सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल अपनी औपचारिक संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग कुछ अपवादों को छोड़कर केवल अपने मंत्रियों की सलाह के अनुसार कार्य करते हैं।
नबाम रेबिया और अन्य बनाम विधानसभा उपाध्यक्ष और अन्य (2016) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय कि संविधान के तहत राज्यपाल को कोई ऐसा कार्य नहीं दिया गया है जिसे वह स्वयं निर्वहन कर सके।