परिस्थितिजन्य साक्ष्य से भी लोक सेवक के खिलाफ रिश्वत साबित हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने 15 दिसंबर को कहा कि एक लोक सेवक को भ्रष्टाचार के मामले में अवैध परितोष ( illegal gratification) के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर भी दोषी ठहराया जा सकता है भले ही उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष मौखिक या दस्तावेजी सबूत उपलब्ध नहीं है।

क्या कहा कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट की बेंच इस सवाल का जवाब दे रही थी कि क्या लोक सेवकों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention Of Corruption Act, 1988) की धारा 7 (सरकारी कार्य के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य परितोष प्राप्त करना) और 13 (1) (D) (i) और (ii) (सरकारी कर्मचारी द्वारा किया गया आपराधिक कदाचार) के तहत भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया जा सकता है यदि शिकायतकर्ता की मृत्यु या किसी अन्य कारण से उसके उपलब्ध नहीं होने की वजह से प्रत्यक्ष मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता के साक्ष्य के अभाव में (प्रत्यक्ष, प्राथमिक, मौखिक, दस्तावेजी साक्ष्य के माध्यम से), न्यायालय को धारा 7 और धरा 13 (1)(D)(i) ii) के तहत अभियोजन पक्ष द्वारा किसी अन्य सबूतों के आधार पर लोक सेवक के अपराध या दोष पर निष्कर्ष निकालने की अनुमति है।

अभियोजन पक्ष (prosecution) भ्रष्टाचार के मामले को किसी अन्य गवाह, मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य या उन मामलों में परिस्थितिजन्य साक्ष्य की मदद से उन मामलों में लोक सेवक को दोषी साबित कर सकता है जिनमें शिकायतकर्ता होस्टाइल (बयान से पलटना) हो गए हैं। अर्थात मुकदमा समाप्त नहीं होगा या उस व्यक्ति बरी नहीं किया जायेगा।

यदि रिश्वत देने वाला कोई व्यक्ति लोक सेवक की ओर रिश्वत की मांग किए बिना अवैध परितोष का भुगतान करने की पेशकश करता है और बाद लोक सेवक केवल प्रस्ताव को स्वीकार करता है और भुगतान प्राप्त करता है, तो यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम अधिनियम की धारा 7 के तहत परितोष की “स्वीकृति” (acceptance) का मामला होगा। दूसरी ओर, यदि आरोपी लोक सेवक रिश्वत की मांग करता है और भुगतान स्वीकार करता है, तो यह “प्राप्ति” (obtainment) का मामला होगा और धारा 13 (1) (डी) (i) और (ii) के तहत एक अपराध होगा। हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रिश्वत की पेशकश करने,अवैध परितोष की मांग करने और स्वीकार करने, इन सभी मामलों में अभियोजन पक्ष को तथ्य के साथ प्रभावी रूप से साबित करना होगा।

भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम 2018

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018 द्वारा मौजूदा कानून को कठोर बनाने और अधिनियम के तहत अपराध के कवरेज का विस्तार करने के लिए संशोधित किया गया था।

संशोधन अधिनियम रिश्वत देने वाले के लिए एक अलग प्रावधान प्रदान करता है। धारा 8 के तहत संशोधन अधिनियम इसके लिए अलग प्रावधान करता है। संशोधन अधिनियम भ्रष्टाचार के आपूर्ति पक्ष को संबोधित करता है, जो ऐसे किसी भी व्यक्ति को दंडित करता है जो रिश्वत देता है या रिश्वत देने का वादा करता है या कर्तव्य के अनुचित प्रदर्शन के लिए लोक सेवक को इनाम के रूप में कोई अनुचित लाभ देता है; ऐसा व्यक्ति सात वर्ष के कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डनीय होगा।

उक्त धारा उस व्यक्ति पर लागू नहीं होती है जिसे लोक सेवक को रिश्वत या अनुचित लाभ देने के लिए मजबूर किया हो और इस तरह के लाभ प्रदान करने की तारीख से सात साल के भीतर कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सूचित किया हो।

धारा 17A – को सम्मिलित किया गया है, जो एक लोक सेवक के खिलाफ उसके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन से संबंधित मामलों में, केंद्र या सम्बंधित राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना, भ्रष्टाचार-रोधी एजेंसी (सीबीआई शामिल) द्वारा “पूछताछ या जांच” को रोकता है।

यह प्रावधान प्रशासन के सबसे निचले पायदान सहित सभी लोक सेवकों पर लागू होता है।

सांसद और विधायक के मामले में राजयसभा सभापति/लोकसभाध्यक्ष/विधानसभा अध्यक्ष की स्वीकृति आवश्यक होगी।

संशोधित कानून दो साल की अवधि के भीतर एक विशेष न्यायाधीश द्वारा मुकदमे को पूरा करने का भी प्रावधान करता है, जिसे कुल मिलाकर चार साल तक बढ़ाया जा सकता है।

संशोधित कानून सेवानिवृत्त लोक सेवकों पर अभियोजन की मंजूरी के बिना सक्षम प्राधिकारी द्वारा मुकदमा चलाने पर रोक लगाता है।

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