COP-27 ने ऐतिहासिक ‘नुकसान और क्षति’ फंड समझौते को अपनाया

मिस्र के शर्म अल शेख में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन-COP27 ने ‘नुकसान और क्षति’ (loss and damage) फंड स्थापित करने के समझौते को अपना लिया है जो गरीब देशों को ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाली चरम मौसम की घटनाओं से निपटने में मदद करेगा।

  • फंड को अपनाना वल्नरेबल देशों के लिए एक बड़ी जीत है, जो लंबे समय से वित्तीय मुआवजे की मांग करते रहे हैं क्योंकि वे अक्सर जलवायु परिवर्तन के कारण चरम बाढ़, सूखा, हीटवेव , अकाल और तूफान जैसी परिघटनाओं का सामना करते हैं जिसके लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि विकसित देशों का औद्योगीकरण जिम्मेदार है।
  • यह फण्ड मुख्य रूप से सबसे वल्नरेबल देशों के लिए स्थापित किया गया है हालांकि मध्यम आय वाले देश भी जलवायु आपदाओं के गंभीर रूप से सामना करने की स्थिति में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं
  • फंड शुरू में विकसित देशों और अन्य निजी और सार्वजनिक स्रोतों जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से अंशदान प्राप्त करेगा।
  • चीन जैसी प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं को शुरू में योगदान करने की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन इसका विकल्प खुला रखा गया है और भविष्य में इस पर वार्ता जारी रखी जाएगी।
  • यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका की यह एक प्रमुख मांग रही है, और वे तर्क देते हैं कि वर्तमान में विकासशील देशों के रूप में वर्गीकृत चीन और अन्य बड़े प्रदूषकों के पास अपनी क्षति और नुकसान की भरपाई का भुगतान करने के लिए वित्तीय ताकत और जिम्मेदारी है।

ट्रांज़िशनल समिति स्थापित

  • COP27 ने एक ट्रांज़िशनल समिति स्थापित करने का निर्णय लिया है जो नवंबर-दिसंबर 2023 के COP28 में उपर्युक्त फण्ड के तौर-तरीकों, स्रोतों आदि को तय करेगी।
  • ट्रांज़िशनल समिति में 23 सदस्य होंगे, जिसमें विकसित देशों के पक्षकारों के 10 सदस्य और विकासशील देशों के पक्षकारों के 13 सदस्य शामिल होंगे।
  • समिति विचार करेगी (ए) फंड की संस्थागत व्यवस्था, तौर-तरीके, संरचना, शासन (बी) नई फंडिंग व्यवस्था के तत्वों को परिभाषित करना (सी) फंडिंग के स्रोतों की पहचान करना और उनका विस्तार करना; (डी) मौजूदा वित्त पोषण व्यवस्था तंत्रों के साथ समन्वय और उसे पूरक बनाना सुनिश्चित करना।

“नुकसान और क्षति” फंडिंग पर विकसित और विकासशील देशों में मतभेद

  • COP27 के दौरान नुकसान और क्षति की फंडिंग के मुद्दे पर विकसित और विकासशील देशों में मतभेद उभरकर सामने आये थे।
  • विकसित देश चाहते हैं कि उच्च आय वाले देशों और चीन तथा भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को भी फंडिंग में डोनर देश के रूप में शामिल किया जाये।
  • उनका यह भी कहना है कि इस फण्ड से वित्तपोषण केवल केवल वल्नरेबल देशों (द्वीपीय राष्ट्र और अल्प विकसित देश) तक सीमित रखा जाये।
  • यूरोपीय संघ लॉस एंड डैमेज को ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कटौती की शर्त से भी जोड़ना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मीथेन जैसे गैर-कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक कम करने के लिए सभी देश प्रयास करें तथा ग्लोवल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के अपने प्रयासों को सभी देश तत्काल अधिक करे ताकि मिटिगेशन में जो अंतराल (गैप) है उसे कम किया जा सके।
  • वे चाहते हैं कि जितनी जल्दी हो सके बेरोकटोक कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम किया जाये

नुकसान और क्षति के लिए सैंटियागो नेटवर्क

  • COP27 के सदस्यों ने नुकसान और क्षति के लिए सैंटियागो नेटवर्क (Santiago Network for Loss and Damage) के संचालन के लिए संस्थागत व्यवस्था पर भी सहमति व्यक्त की, ताकि विकासशील देशों को तकनीकी सहायता दी जा सके जिन पर विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का अधिक खतरा है।

“नुकसान और क्षति” (Loss and Damage) क्या है?

  • “नुकसान और क्षति” (Loss and Damage) से तात्पर्य उन अमीर और विकसित देशों द्वारा भुगतान की जाने वाली लागत से है, जो पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले औद्योगिक उत्सर्जन के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं।
  • यह क्षतिपूर्ति यानी लागत उन गरीब देशों को भुगतान करना होगा जिनका पर्यावरण प्रदूषण में नाममात्र का योगदान है, लेकिन एक्सट्रीम क्लाइमेट इवेंट्स का सर्वाधिक खतरा का सामना वे ही कर रहे हैं। उदाहरण के लिए , हाल ही में पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़।
  • वास्तव में, जलवायु आपदाओं से होने वाले नुकसान और क्षति के लिए मुआवजे की मांग यूनिवर्सल रूप से स्वीकृत “प्रदूषक द्वारा भुगतान” (Polluter Pays) सिद्धांत का विस्तार है।
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