कालानमक चावल की दो नई बौने किस्मों का विकास

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काली भूसी और तेज सुगंध वाली धान की एक पारंपरिक किस्म “कालानमक” (Kalanamak) की एक नयी किस्म विकसित की गयी है।

  • कालानमक चावल को भगवान बुद्ध का श्रावस्ती क्षेत्र के लोगों को उपहार माना जाता है जो ज्ञान प्राप्ति के बाद इस क्षेत्र का दौरा किया था।
  • उत्तरपूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र के 11 जिलों में और नेपाल में उगाई जाने वाली इस पारंपरिक किस्म में ‘लॉजिंग’ (Lodging) एक समस्या रही है, जो इसकी कम उपज का एक बड़ा कारण है।
  • लॉजिंग एक ऐसी स्थिति है जिसमें दाने बनने के कारण पौधे का शीर्ष भारी हो जाता है, तना कमजोर हो जाता है और पौधा जमीन पर गिर जाता है।
  • लॉजिंग का समाधान करते हुए, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने कलानामक चावल की दो बौनी किस्मों को सफलतापूर्वक विकसित किया है। इनका नाम पूसा नरेंद्र कालानमक 1638 और पूसा नरेंद्र कालानमक 1652 रखा गया है।
  • IARI का कहना है कि नया नाम अयोध्या में आचार्य नरेंद्र देव कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के साथ दो किस्मों के परीक्षण से जुड़ने की वजह से दिया गया।
  • चावल की नयी किस्म बिंदली म्यूटेंट 68 से बौना जीन लाकर एक ब्रीडिंग कार्यक्रम के माध्यम से विकसित की गयी है। इसमें पूसा बासमती 1176 की ब्रीडिंग भी शामिल है।
  • जहां कालानमक की पुराने किस्म के पौधे की लंबाई 140 सेंटीमीटर होती है वहीं नई किस्म 95-100 सेंटीमीटर के बीच होती है। नई किस्मों की उपज पारंपरिक किस्म की तुलना में दोगुनी है।
  • बता दें पारंपरिक कालानमक चावल भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रणाली के तहत संरक्षित है।
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