सुप्रीम कोर्ट में पूरे वर्ष के लिए संविधान पीठ गठित करने की कवायद: मुख्य न्यायाधीश

भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने आश्वासन दिया है वह इस दिशा में प्रयास करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट में कम से कम एक संविधान पीठ (Constitution bench) मामलों की सुनवाई पूरे वर्ष करे।

मुख्य न्यायाधीश ने शीर्ष अदालत में मामलों की तत्काल सूची में स्पष्टता और पारदर्शिता का वादा किया। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अधिकांश मामलों की सुनवाई एक खंडपीठ (2 या 3 न्यायाधीशों वाली) द्वारा की जाती है। इस नियम का अपवाद संविधान पीठ है।

संविधान पीठ (Constitution bench) संबंधी प्रावधान

एक संविधान पीठ में सुप्रीम कोर्ट के कम से कम पांच या अधिक न्यायाधीश होते हैं जो किसी मामले में संविधान की व्याख्या के संबंध में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्नों को तय करने के लिए समय-समय पर गठित किये जाते हैं।

संविधान पीठ के लिए प्रावधान भारत के संविधान में अनुच्छेद 143 के तहत प्रदान किया गया है।

भारत का मुख्य न्यायाधीश संविधान पीठ का गठन करने और मामलों को संदर्भित करने के लिए अधिकृत है।

निम्नलिखित परिस्थितियों के होने पर संविधान पीठों की स्थापना की जाती है:

1) जब किसी मामले में संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून का एक महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल होता है [अनुच्छेद 145 (3)]। अनुच्छेद 145(3) में प्रावधान है कि संविधान की व्याख्या के रूप में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले को तय करने के उद्देश्य से या अनुच्छेद 143 के तहत रिफरेन्स किये विषय की सुनवाई न्यूनतम पांच न्यायाधीश की पीठ करेगी ।”

2) जब भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत किसी तथ्य या कानून के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांगी हो। संविधान का अनुच्छेद 143 भारत के सर्वोच्च न्यायालय को सलाहकार क्षेत्राधिकार प्रदान करता है। प्रावधान के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे प्रश्न संबोधित कर सकते हैं, जिन्हें वह लोक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति द्वारा रिफरेन्स के रूप में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देता है। हालांकि, शीर्ष अदालत द्वारा इस तरह की रेफरल सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है, न ही यह ‘सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून’ है।

3) जब सर्वोच्च न्यायालय के दो या अधिक तीन-न्यायाधीशों की पीठों ने कानून के एक ही विषय पर परस्पर विरोधी निर्णय दिए हों, तो एक बड़ी पीठ द्वारा कानून की निश्चित समझ और व्याख्या की आवश्यकता होती है।

संविधान पीठों को तदर्थ आधार (अस्थायी आधार) पर गठित किया जाता है जब उपर्युक्त शर्तें मौजूद होती हैं।

अधिकांश ऐतिहासिक मामले, जैसे कि एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य, आदि, जिनमें अदालत ने कानून को कुछ हद तक अंतिम रूप से तय किया, संविधान पीठों द्वारा तय किया गया था।

ज्यादातर मामलों में आने वाले लंबे समय तक संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले में गड़बड़ी या खारिज होने की संभावना नहीं होती है। इसलिए किसी विषय पर ऐसे फैसले अंतिम माने जाते हैं – क्योंकि इस तरह के फैसले को रद्द करने का एकमात्र तरीका यह है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच में से प्रत्येक को इस बात के लिए संतुष्ट कर लेना की पूर्ववर्ती निर्णय गलत था, कठिन है। या फिर इसे सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा जा सकता है जहाँ पिछले फैसले को खारिज करने के लिए न्यायाधीशों को मना लेना और मुश्किल होता है।

error: Content is protected !!