सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (SMA) के प्रावधानों के खिलाफ याचिका खारिज की

उच्चतम न्यायालय ने 29 अगस्त को विशेष विवाह अधिनियम 1954 (Special Marriage Act 1954: SMA) के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका को खारिज कर दिया।

याचिका में SMA की धारा 5 को चुनौती दी गयी थी जिसके तहत दूसरे धर्म में और अंतर्जातीय विवाह के मामले में विवाहित जोड़े शरण लेते हैं।

रिट याचिका में इन प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीशुदा निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया गया क्योंकि इसमें जोड़ों को शादी की तारीख से 30 दिन पहले जनता से आपत्तियां आमंत्रित करने का नोटिस देना अनिवार्य किया गया है।

वकील केआर श्रीपति और अनुपमा श्रीपति और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड श्रीराम परक्कत द्वारा दायर रिट याचिका में यह भी कहा गया था कि ये प्रावधान अनुच्छेद 15 के धर्म, नस्ल, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव के निषेध तथा अनुच्छेद 14 के के समानता के अधिकार पर का उल्लंघन करते हैं।

याचिका में यह भी कहा गया था कि ये आवश्यकताएं पर्सनल कानूनों में अनुपस्थित हैं। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने इन याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया।

विशेष विवाह अधिनियम 1954 की धारा 5

विशेष विवाह अधिनियम 1954 की धारा 5 के तहत दूसरे धर्म में और अंतर्जातीय विवाह करने वाले जोड़ों को शादी की तारीख से 30 दिन पहले विवाह अधिकारी को नोटिस देना होता है।

यह रिट धारा 6 से धारा 10 में आने वाले प्रावधानों को खत्म करने की मांग करती थी।

धारा 6 में इस तरह के नोटिस को विवाह अधिकारी द्वारा बनाए गए विवाह नोटिस बुक में दर्ज करने की आवश्यकता होती है, जिसका निरीक्षण “किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जो इसका निरीक्षण करना चाहता है। इन नोटिसों को विवाह अधिकारी के कार्यालय में “विशिष्ट स्थान” पर भी लगाया जाना है ताकि कोई भी विवाह पर आपत्ति उठा सके।

धारा 7 आपत्ति करने की प्रक्रिया प्रदान करती है जैसे कि किसी भी नवविवाहित पक्ष के पास पहले से जीवित पति या पत्नी है, और “दिमागी अस्वस्थता” के कारण सहमति देने में असमर्थ है या मानसिक विकार से पीड़ित है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति विवाह या प्रजनन के लिए अयोग्य है। धारा 8 आपत्ति प्रस्तुत करने के बाद की जाने वाली जांच प्रक्रिया को निर्दिष्ट करती है।

SMA की धारा 5 से जुड़ी चिंताएं

इन सार्वजनिक नोटिसों का इस्तेमाल असामाजिक तत्वों ने शादी करने वाले जोड़ों को परेशान करने के लिए किया है।

ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां विवाह अधिकारी कानून से परे गए हैं और जोड़े के माता-पिता को इस तरह के नोटिस भेजे हैं।

कई लोग एसडीएम कार्यालय के कर्मचारियों के व्यवहार के बारे में भी शिकायत करते हैं जो अक्सर आवेदनों को हटा देते हैं या देरी करते हैं और जोड़ों को शादी करने से रोकते हैं।

error: Content is protected !!