श्रीलंका में आर्थिक संकट की क्या वजहें थीं?
श्रीलंका के आर्थिक संकट (Economic crisis in Sri Lanka) पर महीनों के विरोध के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के देश से भाग जाने के बाद आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी गई थी।
अप्रैल 2022 में राजधानी कोलंबो में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और फिर यह पूरे देश में फैल गया। लोग दैनिक बिजली कटौती और ईंधन, भोजन और दवाओं जैसी बुनियादी चीजों की कमी से जूझ रहे थे।
महंगाई 50 फीसदी से ज्यादा हो गयी थी। देश में बसों, ट्रेनों और चिकित्सा वाहनों जैसी आवश्यक सेवाओं के लिए पर्याप्त ईंधन नहीं था। उसके पास अधिक आयात करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं थी।
ईंधन की इस कमी के कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई थी।
जून 2022 के अंत में, सरकार ने दो सप्ताह के लिए गैर-जरूरी वाहनों के लिए पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया।
ईंधन की बिक्री गंभीर रूप से प्रतिबंधित हो गयी। स्कूलों को बंद कर दिया गया, और लोगों को घर से काम करने के लिए कहा गया ।
श्रीलंका अपनी जरूरत का सामान विदेशों से नहीं खरीद पा रहा था और मई 2022 में यह अपने इतिहास में पहली बार अपने विदेशी ऋण पर ब्याज भुगतान करने में विफल रहा।
ऋण ब्याज का भुगतान करने में विफलता निवेशकों के साथ किसी देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे उसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में आवश्यक धन उधार लेना कठिन हो जाता है। यह इसकी मुद्रा और अर्थव्यवस्था में विश्वास को और नुकसान पहुंचा सकता है।
श्रीलंका पर विदेशी ऋणदाताओं का 51 बिलियन डॉलर से अधिक का बकाया है, जिसमें चीन का 6.5 बिलियन डॉलर भी शामिल है, जिसने अपने ऋणों के पुनर्गठन के बारे में चर्चा शुरू कर दी है।
श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण
श्रीलंका सरकार ने इस आर्थिक संकट के लिए कोविड महामारी को दोषी ठहराया था। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक विदेशी पर्यटकों पर निर्भर है जो इसके सबसे बड़े विदेशी मुद्रा अर्जकों में से एक है किन्तु कोविड महामारी की वजह से विदेशी पर्यटकों का आना पूरी तरह से बंद हो गया।
यह भी कहा जा रहा है कि वर्ष 2019 में घातक बम हमलों की श्रृंखला से भी पर्यटक भयभीत थे।
हालांकि, कई विशेषज्ञ राष्ट्रपति राजपक्षे के खराब आर्थिक कुप्रबंधन को दोष देते हैं।
वर्ष 2009 में गृहयुद्ध के अंत में, श्रीलंका ने विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने की कोशिश करने के बजाय, अपने घरेलू बाजार में सामान उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित करना चुना। इसका मतलब था कि अन्य देशों को निर्यात किये जाने से होने वाली इसकी आय कम रही, जबकि आयात का बिल बढ़ता रहा।
श्रीलंका अब हर साल निर्यात की तुलना में 3 बिलियन डॉलर अधिक आयात करता है, और यही कारण है कि उसके पास विदेशी मुद्रा समाप्त हो गई ।
वर्ष 2019 के अंत में, श्रीलंका के पास 7.6 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जो गिरकर लगभग 250 मिलियन डॉलर हो गया है।
श्री राजपक्षे द्वारा 2019 की शुरुआत में की गई बड़ी कर कटौती की भी आलोचना की गई, जिससे प्रति वर्ष 1.4 बिलियन डॉलर से अधिक की सरकारी आय का नुकसान हुआ।
जब वर्ष 2021 की शुरुआत में श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमी एक गंभीर समस्या बन गई, तब सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें सीमित करने की कोशिश की।
किसानों को रासायनिक उर्वरकों के बजाय स्थानीय रूप से प्राप्त जैविक उर्वरकों का उपयोग करने के लिए कहा गया। इससे बड़े पैमाने पर फसल बर्बाद हो गई।
श्रीलंका को विदेशों से अपने खाद्य भंडार की पूर्ति करनी पड़ी, जिससे उसकी विदेशी मुद्रा की कमी और भी बदतर हो गई।