भुला दिए जाने के अधिकार (right to be forgotten) और निजता के अधिकार
खुद को ‘भुला दिए जाने के अधिकार’’ (right to be forgotten) को ‘निजता के अधिकार’ (right to privacy) के हिस्से के रूप में स्वीकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई को अपनी रजिस्ट्री को वैवाहिक मुकदमे में उलझे वादियों के व्यक्तिगत विवरण को हटाने के लिए एक सिस्टम तैयार करने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पीठ ने महिला की उस याचिका को सही माना, जिसमें कहा गया था कि उसकी व्यक्तिगत जानकारी, जैसे कि उसके पति का नाम और आवासीय पता, को या तो हटा दिया जाना चाहिए या उसके मामले के फैसले से छुपाया जाना चाहिए जो अब सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है, जहां से इसे अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से शेयर किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में खुद को ‘भुला दिए जाने के अधिकार’’ (right to be forgotten) की उनकी याचिका का उनके पति ने भी समर्थन किया था।
महिला के वकील ने कहा कि हर बार जब कोई सर्च इंजन पर ‘वैवाहिक विवाद’, ‘यौन अपराध’ या किसी अन्य संबंधित शब्दों जैसे कीवर्ड दर्ज करता है तो अदालत के फैसले पॉप अप होते हैं।
उल्लेखनीय है कि 2017 में के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ का मामला (K.S. Puttaswamy vs Union of India case) के ऐतिहासिक फैसले में ‘निजता के अधिकार’ (right to privacy) को मान्यता दी गयी थी।
यह अधिकार भारत भर के विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर कई मामलों में देर से चलन में आया है।
‘भुला दिए जाने के अधिकार’’ (right to be forgotten) कुछ परिस्थितियों में निजी जानकारी को इंटरनेट से हटाने के अधिकार को संदर्भित करता है।
यह अधिकार इस अवधारणा पर आधारित है कि एक व्यक्ति को उसके अतीत के कार्यों के लिए ‘कलंकित’ हुए बिना, अपने जीवन को स्वायत्त तरीके से जीने का अधिकार होना चाहिए।
निजता के अधिकार (right to privacy) को अनुच्छेद 21 के “जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार (right to life and liberty) का अंग माना गया है। पुट्टस्वामी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के अधिकार को मान्यता प्रदान किया था।