भारत में अल्पसंख्यकों का निर्धारण

राष्ट्रीय स्तर पर किसी समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय (Minority Community) के रूप में अधिसूचित करने की केंद्र की शक्ति को चुनौती देते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि किसी समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित करने का केंद्र का निर्णय मनमाना है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 के TMA. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (T. M. A. Pai Foundation vs State Of Karnataka case) के मामले में कहा था कि, “अल्पसंख्यक का निर्धारण का आधार इकाई राज्य होगी न कि सम्पूर्ण भारत।

  • याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि केंद्र की अधिसूचना ने एक विषम स्थिति पैदा कर दी है जिसमें केंद्र द्वारा अल्पसंख्यकों के रूप में घोषित समुदायों को उन राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में भी योजनाओं का लाभ मिल रहा हैं जहां वे बहुसंख्यक में हैं (उदाहरण के लिए जम्मू और कश्मीर में मुस्लिम और नागालैंड में ईसाई) जबकि हिंदू धर्म, यहूदी और बहाई अनुयायी, जो इन राज्यों में अल्पसंख्यक हैं, को अधिनियम के तहत समान दर्जा नहीं दिया गया है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना से पता चला है कि लक्षद्वीप (2.5%), मिजोरम (2.75%), नागालैंड (8.75%), मेघालय (11.53%), जम्मू-कश्मीर (28.44%), अरुणाचल प्रदेश (29%), मणिपुर 31.39%), और पंजाब (38.40%) में हिंदू अल्पसंख्यक बन गए हैं। लेकिन अल्पसंख्यक लाभों से वंचित किया जा रहा है जो वर्तमान में इन स्थानों पर संबंधित बहुसंख्यक समुदायों द्वारा प्राप्त किए जा रहे हैं।
  • जनहित याचिका विशेष रूप से अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के राष्ट्रीय आयोग या NCMEI अधिनियम 2004 की धारा 2 (F) (National Commission for Minority Educational Institutions or NCMEI Act 2004) की वैधता पर सवाल उठाती है, इसे मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29 और 30 के विपरीत करार देती है।
  • धारा 2 (F) कहती है कि इस अधिनियम के उद्देश्य के लिए “अल्पसंख्यक,” शब्द से तात्पर्य केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय से है।”
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) अधिनियम, 1992 की धारा 2 (C) भी केंद्र को समान शक्तियां प्रदान करती है।
  • वर्ष 2005 में, केंद्र सरकार ने पांच समुदायों – मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी – को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया था। वर्ष 2014 में, सरकार ने जैन धर्म के अनुयायियों को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया।
  • इस तरह अब अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में छह समुदायों को अधिसूचित किया गया है।
  • अनुच्छेद 29, जो “अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण” से संबंधित है, कहता है कि “भारत के क्षेत्र या उसके किसी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी एक अलग भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार होगा।
  • वहीं अनुच्छेद 30 “शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकार” से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, उन्हें अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 350 (B) कहता है कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाने वाले भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी होगा।

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