भारत और विकासशील देशों ने भावी डिजिटल कर पर OECD योजना का विरोध किया
भारत और अन्य विकासशील देशों के G24 समूह ने एक बहुपक्षीय कन्वेंशन के उस प्रावधान पर आपत्ति जताई है जो राष्ट्रों को भविष्य के किसी भी डिजिटल सेवा कर, जैसे कि इक्वलाइजेशन लेवी, को लागू करने से रोकता है। इन देशों का कहना है कि इस तरह के प्रावधान उसके संप्रभु अधिकारों (sovereign commitments) को सीमित करने जैसा है।
यह गतिरोध डिजिटलीकरण की चुनौतियों का समाधान के लिए ग्लोबल टैक्स डील (global tax deal) को लागू करने में देरी कर सकता है।
इस साल मार्च में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बहुराष्ट्रीय उद्यमों द्वारा सेवाओं की आपूर्ति पर भारत द्वारा लगाए गए 2% इक्वलाइजेशन लेवी को सही ठहराते हुए कहा था कि भारत में सेवा देने वाली कंपनियों द्वारा अर्जित राजस्व पर कर लगाना एक संप्रभु अधिकार है।
टू-पिलर सोल्यूशन्स/ दो-स्तंभ समाधान
उल्लेखनीय है कि 4 नवंबर, 2021 को, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के तत्वावधान में, 137 देशों ने अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण से उत्पन्न होने वाली कर चुनौतियों का समाधान करने के लिए “टू-पिलर सोल्यूशन्स/ दो-स्तंभ समाधान” (Two-Pillar Solution) पर सहमति व्यक्त की थी।
पिलर-1 (Pillar-1) का उद्देश्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कराधान का उन देशों के अनुसार बेहतर वितरण सुनिश्चित करना है जहां वे काम करते हैं। इसके तहत 20 अरब यूरो राजस्व और 10% से अधिक लाभ मार्जिन वाली कंपनियों पर कर लगाया जाएगा।
पिलर-2 (Pillar-2) का संबंध 15% के वैश्विक न्यूनतम कर (global minimum tax) से है। 20 दिसंबर, 2021 को, OECD ने अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली में एक ऐतिहासिक सुधार के कार्यान्वयन में सहायता के लिए विस्तृत नियम प्रकाशित किए, जो सुनिश्चित करेगा कि बहुराष्ट्रीय उद्यम (MNEs) वर्ष 2023 से न्यूनतम 15% कर का भुगतान करें।
ये नियम पिलर-2 के तहत तथाकथित ग्लोबल एंटी-बेस इरोजन (GloBE) नियमों के लिए दायरा और सिस्टम निर्धारित करते हैं। इसी के तहत 15% की वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट टैक्स ( global minimum corporate tax) दर निर्धारित की जाएगी। यह न्यूनतम कर 750 मिलियन यूरो से अधिक राजस्व वाले (MNEs पर लागू होगा। इससे सालाना अतिरिक्त वैश्विक कर राजस्व में लगभग 150 बिलियन अमरीकी डालर सृजित होने का अनुमान है।
इक्वलाइजेशन लेवी (Equalisation levy)
भारत ने पहली बार वर्ष 2016 में इक्वलाइजेशन लेवी (Equalisation levy) की शुरुआत की। गैर-निवासियों द्वारा भारतीय निवासी से ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं से अर्जित आय पर 6 प्रतिशत शुल्क लगाया गया।
गैर-निवासियों द्वारा भारतीय निवासी से ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं से अर्जित आय पर 6 प्रतिशत शुल्क लगाया गया।
वित्त अधिनियम 2020 ने ई-कॉमर्स लेनदेन को शामिल करने के लिए 2016 के इक्वलाइज़ेशन लेवी के दायरे का विस्तार किया।
अधिनियम में धारा 153 (iv) जोड़ा गया, जिसने 2 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार के साथ अनिवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों पर 2 प्रतिशत की इक्वलाइजेशन लेवी लगाने के लिए वित्त अधिनियम 2016 में धारा 165A जोड़ा।
ई-कॉमर्स लेनदेन (वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति से प्राप्त) 1 अप्रैल, 2020 से लागू हुआ। ई-कॉमर्स ऑपरेटर का मतलब एक अनिवासी है जो ऑनलाइन वस्तु की बिक्री या ऑनलाइन सेवाओं का प्रावधान या दोनों के लिए डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक सुविधा या प्लेटफॉर्म का स्वामित्व, संचालन या प्रबंधन करता है।