भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने गूगल पर क्यों लगाया जुर्माना?

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India: CCI) ने गूगल पर एंड्रॉइड मोबाइल डिवाइस इकोसिस्टम के कई बाजारों में अपनी प्रभुत्व का दुरुपयोग करने के लिए 1,337.76 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है और इन गतिविधियों को तत्काल रोकने और बंद करने का आदेश जारी किया है। CCI ने साथ ही गूगल को निर्देश दिया है कि वो एक तय समयसीमा के अंदर अपने काम करने के तरीके में बदलाव करें।

क्या है मामला?

  • स्मार्ट मोबाइल उपकरणों को एप्लिकेशन (एप्स) और प्रोग्राम चलाने के लिए एक ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) की आवश्यकता होती है। एंड्रॉइड एक ऐसा मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसे 2005 में गूगल द्वारा एक्वायर किया गया था।
  • CCI ने मामले में इस एंड्रॉइड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम का लाइसेंस प्रदान करने और गूगल के विभिन्न मोबाइल एप्लिकेशन ( जैसे प्ले स्टोर, गूगल सर्च, गूगल क्रोम, यूट्यूब आदि ) को लेकर गूगल की कार्यप्रणालियों की जांच की थी। जांच के दौरान, गूगल ने एप्पल से मिल रही प्रतिस्पर्धात्मक बाधाओं के बारे में तर्क दिया। गूगल के एंड्रॉइड इकोसिस्टम और एप्पल के IoS इकोसिस्टम के बीच प्रतिस्पर्धा को समझने के लिए, CCI ने दोनों व्यावसायिक मॉडलों में उन अंतर को समझा जो व्यावसायिक निर्णयों के अंतर्निहित प्रोत्साहन को प्रभावित करते हैं।
  • एप्पल का व्यवसाय मुख्य रूप से वर्टीकल इंटीग्रेटेड स्मार्ट डिवाइस इकोसिस्टम पर आधारित है जो अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर कंपोनेंट के साथ हाई-एंड स्मार्ट डिवाइस की बिक्री पर केंद्रित है। वहीं गूगल का कारोबार अपने प्लेटफॉर्म पर यूजर्स को बढ़ाने के अंतिम इरादे से प्रेरित पाया गया ताकि वे इसकी आय प्रदान करने वाली सेवाओं जैसे ऑनलाइन सर्च से जुड़ सकें जो सीधे गूगल के द्वारा दी जा रही ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं से आय को प्रभावित करती है।
  • गूगल एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम का संचालन/प्रबंधन करता है और साथ ही इसके अन्य एप्लीकेशन का लाइसेंस देता है और OEM (मूल मोबाइल निर्माता) अपने स्मार्ट मोबाइल उपकरणों में इस OS और गूगल के ऐप्स का उपयोग करते हैं। इसी अनुसार वे अपने अधिकारों और शर्तों के लिए कई समझौतों जैसे मोबाइल एप्लिकेशन डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट (MADA), एंटी-फ्रैगमेंटेशन एग्रीमेंट (AFA), एंड्रॉइड कम्पैटिबिलिटी कमिटमेंट एग्रीमेंट (ACC), रेवेन्यू शेयरिंग एग्रीमेंट (आरएसए) आदि में शामिल होते हैं।
  • MADA सुनिश्चित करता है कि सर्च के लिए सबसे जरूरी एंट्री प्वाइंट यानी, सर्च ऐप, विजेट और क्रोम ब्राउज़र एंड्रॉइड डिवाइस में पहले से ही इंस्टॉल हों जो गूगल की सर्च सर्विस को अपने प्रतिस्पर्धियों पर महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्रदान करते हैं।
  • इसके अलावा, गूगल ने एंड्रॉइड उपकरणों में अपने अन्य राजस्व अर्जित करने वाले एप जैसे यूटयूब को लेकर अपने प्रतिस्पर्धियों पर महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की है। इन सेवाओं के प्रतिद्वंदी कभी भी उसी स्तर की बाजार पहुंच का लाभ नहीं उठा सकते थे, जिसे गूगल ने MADA के माध्यम से अपने लिए सुरक्षित किया था
  • एकतरफा यथास्थिति रहने और नेटवर्क इफेक्ट से इन बाजारों में गूगल के प्रतिस्पर्धियों के प्रवेश में अहम अवरोध बनते हैं।
  • MADA के तहत संपूर्ण गूगल मोबाइल सूट (GMS) की अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन (इसे अनइंस्टॉल करने का कोई विकल्प नहीं है) और उनके खास प्लेसमेंट से डिवाइस निर्माताओं के लिए अनुचित स्थिति बनी और इस तरह धारा 4 ( 2)(A)(i) अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ। गू
  • गल के द्वारा OEM पर लगाई गई शर्तें सप्लीमेंट्री ऑब्लीगेशन की तरह ही हैं और इस प्रकार, अधिनियम की धारा 4(2)(D) का उल्लंघन होता है।
  • गूगल ने ऑनलाइन सर्च मार्केट में अपना दबदबा कायम रखा है, जिससे प्रतिस्पर्धी सर्च ऐप्स के लिए बाज़ार में पहुँच नहीं मिली जो कि अधिनियम की धारा 4(2)(c) का उल्लंघन है।
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