बैंकों और व्यापार कंपनियों को रुपये में सीमापार व्यापार को बढ़ावा देने को कहा गया

भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय ने 7 सितंबर को बैंकों के शीर्ष प्रबंधन और व्यापार संगठनों के प्रतिनिधियों से विदेशी मुद्रा के बजाये भारतीय मुद्रा रुपये में निर्यात और आयात लेनदेन (exports and import transactions in rupee) को बढ़ावा देने को कहा है।

-बता दें कि आज की स्थिति में (ज्यादातर मामलों में) यदि कोई भारतीय कम्पनी निर्यात या आयात करती है, तो लेनदेन हमेशा विदेशी मुद्रा में होता है (नेपाल और भूटान जैसे देशों को छोड़कर)।

आयात के लिए भारतीय कंपनी को विदेशी मुद्रा में भुगतान करना पड़ता है। भारतीय कंपनी को निर्यात के मामले में विदेशी मुद्रा में भुगतान मिलता है और कंपनी उस विदेशी मुद्रा को रुपये में बदल देती है क्योंकि उसे अपनी जरूरतों के लिए रुपये की जरूरत होती है।

रुपये में निर्यात और आयात लेनदेन

-रुपये में निर्यात और आयात लेनदेन में विदेशी मुद्रा की भूमिका नहीं होती।

-यूक्रेन पर रुसी हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए थे। इससे रूस के साथ भारत का व्यापार प्रभावित हो रहा थी। साथ ही तेल के दाम बढ़ने के साथ विदेशी मुद्रा पर भी दबाव देखा जा रहा था।

इसी को ध्यान में रखते हुए जुलाई 2022 में, RBI ने भारत और अन्य देशों के बीच रुपये में व्यापार समझौते की अनुमति दी थी।

-इस निर्णय की बाद, भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार का एक बड़ा हिस्सा रुपये में हो रहा है।

-रुपये में व्यापार लेनदेन के निपटान के लिए, संबंधित बैंकों को व्यापारिक भागीदार देश के कॉरेस्पोंडेंस बैंकों के विशेष रुपया वोस्ट्रो खातों (special rupee vostro: SRV) की आवश्यकता होती है। अर्थात विदेशी व्यापारिक बैंक के खाते भारत के बैंक में खोले जाते हैं जिन्हें वोस्ट्रो खाते कहते हैं।

-इस तंत्र के माध्यम से आयात करने वाले भारतीय आयातकों को भारतीय रुपये में भुगतान करना होगा जो कि विदेशी विक्रेता/आपूर्तिकर्ता से माल या सेवाओं की आपूर्ति के लिए चालान के बदले भागीदार देश के संपर्क बैंक के विशेष वोस्ट्रो खाते में जमा किया जाएगा।

-इस तंत्र के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं के विदेशी शिपमेंट करने वाले निर्यातकों को निर्धारित विशेष वोस्ट्रो खाते में शेष राशि से भारतीय रुपये में निर्यात आय का भुगतान किया जाएगा।

रूपये में आयात-निर्यात के फायदे

-इससे लेन-देन की लागत में कमी आएगी,

-परिवर्तनीय मुद्रा के माध्यम से सेटलमेंट की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी,

-निर्यातकों और आयातकों के लिए विदेशी मुद्रा से जुड़ा जोखिम भी समाप्त हो जाएगा,

-रुपये पर दबाव कम होगा और

-भारत के साथ भुगतान संतुलन का सामना कर रहे भागीदार देशों को काफी मदद मिलेगी।

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