प्रस्तावना से “समाजवादी” और “पंथनिरपेक्ष” शब्दों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट (SC) में पूर्व सांसद डॉ सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई हो रही है, जिसमें भारतीय संविधान की प्रस्तावना (preamble of the Indian Constitution) से “समाजवादी” (socialist) और “पंथनिरपेक्ष” (secular) जैसे शब्दों को हटाने की मांग की गई है।
मुख्य बिंदु
आपातकाल के दौरान 1976 में संविधान में 42वें संशोधन के द्वारा दो शब्द “समाजवादी” और “पंथनिरपेक्ष” को प्रस्तावना में जोड़ा गया था।
दो समान मामलों में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि इन शब्दों को संविधान में शामिल करने का इरादा कभी नहीं था क्योंकि मूल संविधान में ये शब्द शामिल नहीं किये गए थे। अतः प्रस्तावना अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति से परे है।
बता दें कि वर्ष 1995 के प्रसिद्ध LIC मामले में अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘संविधान की प्रस्तावना—– संविधान का एक अभिन्न अंग और स्कीम है’।
हालांकि अदालत ने यह भी कहा था कि प्रस्तावना में उल्लिखित किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन अदालत का रुख करने का कारण नहीं हो सकता है, जिसका अर्थ है कि प्रस्तावना “वाद-योग्य नहीं” (non-justiciable) है।
संविधान में 42वां संशोधन, 1976 में पारित हुआ जब आपातकाल लागू था। इस संशोधन के द्वारा “संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य” (sovereign democratic republic) शब्दों को “संप्रभु समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य” (sovereign socialist secular democratic republic) से बदल दिया गया।
साथ ही “राष्ट्र की एकता” (unity of the nation) की जगह “राष्ट्र की एकता और अखंडता” (unity and integrity of the nation) किया गया।
अनुच्छेद 368(2) के तहत, संसद प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्यों के बहुमत से और उस सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से एक विधेयक पारित करके संविधान में संशोधन कर सकती है।
उसके बाद, विधेयक को राष्ट्रपति के सामने पेश किया जाता है जिसके हस्ताक्षर के बाद संविधान में संशोधन की औपचारिक प्रक्रिया पूरी हो जाती है।