पिलबारा क्रेटन के जिरकॉन में छिपा है उल्कापिंडों के प्रभावों से महाद्वीपों के निर्माण का रहस्य
आज तक, पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसके बारे में हम जानते हैं कि इसके महाद्वीप हैं। वास्तव में ये कैसे बने और विकसित हुए, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन हम यह जानते हैं कि अलग-अलग खंड में हजारों मील दूर अलग-अलग महाद्वीपों के किनारे मेल खाते हैं जो यह दर्शाता है कि बहुत पहले, पृथ्वी का सम्पूर्ण भूभाग एक ही विशाल महामहाद्वीप था।
हालांकि आज जो हम पृथ्वी देखते हैं वह ऐसा नहीं था। किसी चीज़ ने उस महामहाद्वीप को अलग करने के लिए प्रेरित किया होगा। अब, वैज्ञानिकों ने नए सबूत दिए हैं कि विशाल उल्कापिंडों के प्रभावों (giant meteorite impacts) ने इसके अलग होने में यानी महाद्वीपों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
न्यू कर्टिन अनुसंधान ने अभी तक का सबसे मजबूत सबूत प्रदान किया है कि पृथ्वी के महाद्वीपों का निर्माण विशाल उल्कापिंडों के गिरने के प्रभाव (giant meteorite impacts) से हुआ था जो विशेष रूप से हमारी पृथ्वी के साढ़े चार अरब वर्ष के इतिहास के सबसे पहले के अरब वर्षों के दौरान सामना किये गए थे।
कर्टिन स्कूल ऑफ अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंसेज के डॉ टिम जॉनसन के अनुसार यह विचार कि हमारे महाद्वीप का निर्माण उन स्थलों पर हुआ जहां मूल रूप से विशाल उल्कापिंडों के प्रभाव देखे गए थे, पहले भी विद्यमान रहे हैं लेकिन अब तक इस सिद्धांत का समर्थन करने के लिए बहुत कम ठोस सबूत थे।
डॉ जॉनसन ने ये भी कहा कि पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पिलबारा क्रेटन (Pilbara Craton) से चट्टानों में जिरकॉन (zircon) खनिज के छोटे क्रिस्टल, जो प्राचीन क्रस्ट के पृथ्वी के सबसे संरक्षित अवशेष का प्रतिनिधित्व करता है, के अध्ययन से इन विशाल उल्कापिंडों के प्रभावों का सबूत मिला है।
इन जिरकॉन क्रिस्टल में ऑक्सीजन आइसोटोप की संरचना का अध्ययन करने से सतह के पास चट्टानों के पिघलने और फिर नीचे गहराई की और उसके जाने की ‘टॉप-डाउन’ प्रक्रिया का पता चलता है, जो विशाल उल्कापिंड प्रभावों के भूगर्भीय प्रभाव (geological effect of giant meteorite impacts) से मेल खाता है।
शोध कार्य 26 रॉक नमूनों पर किया गया था जिसमें जिरकॉन के टुकड़े थे, जो 3.6 और 2.9 अरब वर्ष पुराने थे।
अनुसंधान दल ने ऑक्सीजन के आइसोटोप का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया; विशेष रूप से, ऑक्सीजन -18 और ऑक्सीजन -16 का अनुपात का, जिसमें क्रमशः 10 और 8 न्यूट्रॉन होते हैं। इन अनुपातों का उपयोग जीवाश्म विज्ञान में उस चट्टान के निर्माण तापमान को निर्धारित करने के लिए किया जाता है जिसमें आइसोटोप पाए जाते हैं।
इन अनुपातों के आधार पर, शोध दल पिलबारा क्रेटन के गठन और विकास में तीन विशिष्ट और मौलिक चरणों को अलग करने में सफलता प्राप्त की।
यह शोध पहला ठोस सबूत प्रदान करता है कि अंततः महाद्वीपों का निर्माण करने वाली प्रक्रियाएं विशाल उल्कापिंड प्रभावों (giant meteorite impacts) के साथ शुरू हुईं। बता दें कि डायनासोर के विलुप्त होने के लिए भी विशाल उल्कापिंड ही जिम्मेदार थे।
डॉ जॉनसन ने कहा कि पृथ्वी के महाद्वीपों के निर्माण और चल रहे विकास को समझना महत्वपूर्ण था क्योंकि जिस भूभाग (ऑस्ट्रेलिया) के अध्ययन पर मौजूदा सिद्धांत आधारित है वहां पृथ्वी के अधिकांश बायोमास, सभी मूल मनुष्य और पृथ्वी के लगभग सभी महत्वपूर्ण खनिज भंडार पाए जाते हैं।
डॉ जॉनसन का कहना है कि कम से कम, इस महाद्वीप में लिथियम, टिन और निकल जैसी क्रिटिकल धातुएं प्राप्त होते हैं। ये वे धातुएं हैं जो जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए हमारे दायित्व को पूरा करने के लिए आवश्यक उभरती ग्रीन प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक वस्तुएं हैं जैसे कि लिथियम बैटरी।
ये खनिज भंडार एक प्रक्रिया का अंतिम परिणाम है जिसे क्रस्टल भेदभाव (crustal differentiation) के रूप में जाना जाता है, जिससे आरंभिक लैंडमास (भू-खंड) का निर्माण हुआ और पिलबारा क्रेटन (Pilbara Craton) इन कई आरंभिक लैंडमास में से एक है।