जम्मू-कश्मीर मतदाता सूची विवाद: विपक्षी दल मतदाता सूची संशोधन के खिलाफ क्यों हैं?

जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO), हिरदेश कुमार ने 17 अगस्त को घोषणा की कि कोई भी व्यक्ति “जो जम्मू-कश्मीर में सामान्य रूप से रह रहा है”, वह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act) के प्रावधानों के अनुसार केंद्र शासित प्रदेश में मतदाता के रूप में सूचीबद्ध होने का अवसर प्राप्त कर सकता है।

उन्होंने यह भी कहा कि बहुत से लोग जिन्हें पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में मतदाता के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया था, अब 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद मतदान करने के पात्र हैं।

भारत का चुनाव आयोग उम्मीद कर रहा है कि जम्मू-कश्मीर की अंतिम मतदाता सूची में 20-25 लाख नए मतदाता जुड़ सकते हैं।

श्री कुमार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में तैनात सशस्त्र बल भी मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकते हैं और संभवत: देश के सबसे युवा केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) में पहली बार होने वाले विधानसभा चुनाव में भाग ले सकते हैं।

CEO ने कहा कि मौजूदा मतदाता सूची को परिसीमन आयोग की सिफारिश के आधार पर नए सीमांकित विधानसभा क्षेत्रों में मैप किया जा रहा है। वर्ष 2019 में अपनाए गए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत, इस साल की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग द्वारा इस केंद्र शासित प्रदेश में सात नए विधानसभा क्षेत्रों के आधार पर ECI जम्मू-कश्मीर में नए मतदाता सूची पर काम कर रहा है।

सात नए विधानसभाओं में छह जम्मू डिवीजन में और एक कश्मीर में है। अब कश्मीर में 47 और जम्मू में 43 सीटें हैं।

श्री कुमार ने कहा कि मतदाता बनने के लिए किसी व्यक्ति के पास जम्मू-कश्मीर का अधिवास प्रमाण पत्र (domicile certificate) होना आवश्यक नहीं है। एक कर्मचारी, एक छात्र, एक मजदूर या बाहर का कोई भी व्यक्ति जो आमतौर पर जम्मू-कश्मीर में रहता है, अपना नाम मतदान सूची में दर्ज कर सकता है।

अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को निरस्त करने के बाद, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और 1951 जम्मू-कश्मीर में लागू है, जो आम तौर पर वहां रहने वाले व्यक्तियों को जम्मू-कश्मीर की मतदाता सूची में पंजीकृत होने की अनुमति देता है, बशर्ते उनका नाम अपने मूल निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची से हटा दिया गया है।

हालांकि बाद में जम्मू-कश्मीर के सूचना और जनसंपर्क निदेशालय (डीआईपीआर) ने जम्मू-कश्मीर मतदाता सूची के संशोधन पर एक स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि कश्मीरी प्रवासियों के नामांकन के लिए विशेष प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

स्पष्टीकरण में कहा गया है कि वर्ष 2011 में जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष सारांश संशोधन (Special Summary Revision) में प्रकाशित मतदाताओं की संख्या 66,00,921 थी; और जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की मतदाता सूची में आज तक मतदाताओं की संख्या 76,02,397 है। यह वृद्धि मुख्य रूप से 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाले नए मतदाताओं के कारण हुई है।

सरकार ने स्पष्टीकरण में यह भी कहा कि मतदाता सूची के सारांश संशोधन के बाद 25 लाख से अधिक मतदाताओं के शामिल होने की रिपोर्ट “निहित स्वार्थों द्वारा तथ्यों की गलत बयानी” है।

सरकार द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण के अनुसार, कश्मीरी प्रवासियों को उनके नामांकन के स्थान पर या पोस्टल बैलेट के माध्यम से या जम्मू, उधमपुर, दिल्ली आदि में विशेष रूप से स्थापित मतदान केंद्रों के माध्यम से मतदान का विकल्प दिया जाता रहेगा।

न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई (सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश) की अध्यक्षता वाला परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) मुख्य सिफारिशें

परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा 9(1)(ए) तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 60(2)(बी) के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 जम्मू क्षेत्र का हिस्सा होंगे और 47 कश्मीर क्षेत्र के तहत होंगे।

पहली बार 9 विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए गए हैं, जिनमें से 6 जम्मू क्षेत्र में और 3 विधानसभा क्षेत्र कश्मीर घाटी में हैं।

क्षेत्र में पांच संसदीय क्षेत्र हैं। परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को एक एकल केंद्र शासित प्रदेश के रूप में माना है। इसलिए, घाटी में अनंतनाग क्षेत्र और जम्मू क्षेत्र के राजौरी तथा पुंछ को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र बनाया गया है।

इस पुनर्गठन के बाद, प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में समान संख्या में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र होंगे। प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में 18 विधान सभा क्षेत्र होंगे।

संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों (अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332) तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 14 की उप-धारा (6) और (7) को ध्यान में रखते हुए, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की विधान सभा में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित की जाने वाली सीटों की संख्या की गणना 2011 की जनगणना के आधार पर की गई है।

क्या होता है परिसीमन ?

  • परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधानमंडल वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा या सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया।
  • संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार, प्रत्येक जनगणना के पश्चात संसद विधि द्वारा परिसीमन कानून बनाती है। कानून के लागू होने के पश्चात केन्द्र सरकार परिसीमन आयोग का गठन करती है। यह परिसीमन आयोग परिसीमन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का सीमांकन करता है।
  • निर्वाचन क्षेत्रों का वर्तमान परिसीमन, परिसीमन अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के अंतर्गत वर्ष 2001 के जनगणना आंकड़ों के आधार पर किया गया है।
  • उपर्युक्त के होते हुए भी, वर्ष 2002 में, 84वें संविधान संशोधन के द्वारा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के परिसीमन की प्रक्रिया को कम से कम वर्ष 2026 तक रोक दिया गया।
  • परिसीमन का कार्य एक उच्च शक्ति निकाय को सौंपा गया है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग के रूप में जाना जाता है।
  • भारत में, इस तरह के परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है – 1952 में, 1963 में, 1973 में और 2002 में। परिसीमन आयोग भारत में एक उच्च शक्ति निकाय है जिसके आदेशों में कानून का बल है और इसे किसी भी अदालत के समक्ष प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है।
  • ये आदेश इस संबंध में भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट की जाने वाली तारीख पर लागू होते हैं।
  • इसके आदेशों की प्रतियां लोक सभा और संबंधित राज्य विधान सभा के समक्ष रखी जाती हैं, लेकिन उनमें किसी संशोधन की अनुमति नहीं है।
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