क्या है G-7 की रुसी ऑयल प्राइस कैप पॉलिसी?
G7 के वित्त मंत्रियों ने यूक्रेन में युद्ध को वित्तपोषित करने की रूस की क्षमता को प्रभावित करने के लिए रूसी तेल का अधिकतम मूल्य को सीमित (price cap on Russian oil) करने पर सहमति व्यक्त की है।
G7 में यूके, यूएस, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान शामिल हैं। यह समूह दुनिया की सात सबसे बड़ी “एडवांस” अर्थव्यवस्थाओं का एक संगठन है।
क्या है तेल मूल्य प्राइस कैप?
इस प्राइस कैप के पीछे मुख्य विचार यह है कि उत्पादन लागत से थोड़ा ऊपर के स्तर पर ही रूसी तेल की बिक्री को प्रोत्साहित किया जाये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उत्पादन बनाए रखने के दौरान रूस की कमाई कम हो। इससे वह राजस्व का इस्तेमाल यूक्रेन में युद्ध के लिए नहीं कर सके।
यह उपाय पश्चिमी देशों के उपभोक्ताओं को आपूर्ति जारी रखने की अनुमति देते हुए रूस को तेल के लिए प्राप्त होने वाली कीमत को सीमित करेगा। अर्थात पश्चिमी देशों के उपभोक्ताओं को तेल कम कीमत पर मिलेगी जिससे तेल का दाम नहीं बढ़ पायेगा तो दूसरी ओर रूस को इस तेल का बहुत कम कीमत मिल पायेगी जिस कारण उसका तेल राजस्व कम हो जाएगा।
रूसी तेल पर प्राइस कैप की शुरूआत का मतलब है कि इस पॉलिसी पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को केवल रूसी तेल और समुद्र के माध्यम से परिवहन किए जाने वाले पेट्रोलियम उत्पादों को खरीदने की अनुमति दी जाएगी जो कि मूल्य सीमा पर या उससे नीचे बेचे जाते हैं।
बता दें कि लंदन समुद्री बीमा के लिए एक प्रमुख वैश्विक केंद्र है, ऐसे में तेल के परिवहन के लिए बीमा की अनुमति उन्हीं शिपिंग को दी जायगी जो प्राइस कैप का पालन करते हैं।
इस समझौते का मतलब होगा कि जी7 और यूरोपीय संघ के देशों में स्थित कंपनियों से शिपिंग सेवाओं और बीमा कवर की मांग करने वाले आयातकों को रूसी तेल के परिवहन के लिए मूल्य सीमा का पालन करना होगा।
हालांकि चीन और भारत – जो रूस के लिए प्रमुख व्यापारिक साझेदार हैं – रूसी तेल पर G7 नीति का पालन नहीं कर सकते हैं। वे रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में शामिल नहीं हुए हैं।
यह भी बता दें कि रूसी तेल का आयात रूसी निर्यात का 44% और कराधान के माध्यम से संघीय सरकार के राजस्व में 17% का योगदान करता है।
उधर रूस ने कहा है कि वह उन देशों को तेल बेचना बंद कर देगा जो रूस के ऊर्जा संसाधनों पर प्राइस कैप लगाते हैं। इससे आशंका बढ़ गयी है कि विश्व में तेल का मूल्य और बढ़ जायेगा पहले से ही मुद्रास्फीति झेल रही विश्व की अर्थव्यवस्था को और दबाव सहना पड़ेगा।
इस तरह प्राइस कैप की नीति अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
दूसरी बात यह है कि भारत पहले से ही डिस्काउंट पर रुसी तेल खरीद रहा है। बेंचमार्क ब्रेंट (benchmark Brent) की कीमत अभी $ 90 से $ 100 प्रति बैरल है, वहीं रूसी तेल $ 18 से $ 25 प्रति बैरल की छूट पर बिक रहा है और चीनी और भारतीय खरीदार इस मूल्य पर रुसी तेल खरीद रहे हैं।
कुछ विश्लेषक रूस की कम उत्पादन लागत की ओर इशारा करते हुए बहुत आक्रामक प्राइस कैप की वकालत कर रहे हैं। हालांकि सच यह है कि रूसी तेल उत्पादन लागत $ 3 से $ 4 प्रति बैरल है। ऐसे में तेल की कीमतें $ 25 से $ 30 प्रति बैरल भी तय की जाती है तब भी रूसी तेल कंपनियां लाभ कमा सकती हैं ।