क्या है “पार-तापी-नर्मदा” लिंक परियोजना ?
गुजरात में आदिवासी समुदाय केंद्र सरकार की “पार-तापी-नर्मदा” नदी जोड़ने की परियोजना का विरोध कर रहे हैं। NWDA (राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना के तहत निर्माण किये जाने वाले प्रस्तावित जलाशयों के कारण लगभग 6065 हेक्टेयर भूमि जलमग्न हो जाएगी।
- कुल 61 गांव प्रभावित होंगे, जिनमें से एक तो पूरी तरह से जलमग्न हो जाएगा और शेष 60 आंशिक रूप से जलमग्न हो जाएंगे।
“पार-तापी-नर्मदा” लिंक परियोजना
- “पार-तापी-नर्मदा” लिंक परियोजना की परिकल्पना पूर्व केंद्रीय सिंचाई मंत्रालय और केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के तहत 1980 के राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan) के तहत की गई थी।
- प्रस्तावित परियोजना के तहत आपस में जुड़ी “पार, तापी और नर्मदा” नदियों का अतिरिक्त पानी जो मानसून में समुद्र में मिल जाता है, उसे सिंचाई के लिए सौराष्ट्र और कच्छ की ओर मोड़ दिया जाएगा।
- परियोजना के तहत पश्चिमी घाट के जल आधिक्य क्षेत्रों से सौराष्ट्र और कच्छ के सुखाड़ वाले क्षेत्रों में नदी के पानी को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है।
- लिंक परियोजना में सात बांधों का निर्माण शामिल है। ये हैं; झेरी, मोहनकवचली, पाइखेड़, चासमांडवा, चिक्कर, डाबदार और केलवान।
तीन नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव
इसमें तीन नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव है:
- महाराष्ट्र में नासिक से निकलने वाली और वलसाड से होकर बहने वाली पार नदी,
- सापुतारा से निकलने वाली तापी नदी जो गुजरात में सूरत और महाराष्ट्र से होकर बहती है, और
- नर्मदा नदी जो मध्य प्रदेश से निकलती है और महाराष्ट्र और गुजरात में भरूच और नर्मदा जिलों से होकर बहती है।
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