क्या है तेंदू पत्ता विवाद?
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव और कांकेर जिलों के 50 गांवों के आदिवासी निवासियों ने राज्य के वन विभाग के एक अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का फैसला किया है, क्योंकिं उस अधिकारी ने तेंदू पत्ते (tendu leaves) को जब्त कर लिया था। यह पहली बार है जब विभाग के किसी अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। इस घटनाक्रम ने वन विभाग और आदिवासियों के बीच तेंदूपत्ता संग्रह को लेकर तनाव को सामने लाया है।
तेंदू पत्ते (tendu leaves) के बारे में
तेंदु (डायोस्पिरस मेलानोकेलोन/Diospirus melanocaylon) को ‘हरा सोना’ भी कहा जाता है और यह भारत में एक प्रमुख लघु वनोपज है। मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा तेंदूपत्ता (डायोस्पाइरोस मेलोनोक्सिलॉन की पत्तियां) उत्पादक राज्य है।
सभी उत्पादक राज्यों में तेंदूपत्ता के व्यापार का राष्ट्रीयकरण (nationalized) कर दिया गया है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और झारखण्ड तेंदूपत्ता के प्रमुख उत्पादक हैं और इन सभी राज्यों में तेंदूपत्ता के व्यापार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है।
राष्ट्रीयकरण का अर्थ है कि व्यापार पर राज्य का एकाधिकार हो गया है। विभिन्न राज्यों ने अलग-अलग वर्षों में राष्ट्रीयकरण किया।
1964 में तत्कालीन अविभाजित मध्य प्रदेश में तेंदूपत्ता के व्यापार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। तब तक लोग देश भर के बाजारों में तेंदूपत्ता बेचने के लिए स्वतंत्र थे।
महाराष्ट्र ने 1969 में, अविभाजित आंध्र प्रदेश ने 1971, 1973 में ओडिशा, 1979 में गुजरात, 1974 में राजस्थान और 2000 में छत्तीसगढ़ में इसी प्रणाली को अपनाया।
राष्ट्रीयकरण व्यवस्था के तहत, राज्य वन विभाग तेंदू पत्ते एकत्र करता है, उनके परिवहन की अनुमति देता है और उन्हें व्यापारियों को बेचता है।
विवाद अनिवार्य रूप से इस बात को लेकर है कि पत्ते बेचने का अधिकार किसके पास है।
राज्य सरकारें कहती हैं कि राष्ट्रीयकरण के कारण वे ही ऐसा कर सकती हैं। दूसरी ओर, तेंदूपत्ता संग्राहक अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 और 2013 के सुप्रीम कोर्ट के बहुचर्चित नियमगिरि मामले में फैसले का हवाला देते हुए कहते हैं कि निजी संग्राहक उन्हें अपने दम पर बेच सकते हैं।
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