कौन थे पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे ?
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Lok Sabha Speaker Om Birla) 65वें राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन (65th Commonwealth Parliamentary Conference) में भाग लेने के लिए कनाडा (Canada) गए हुए हैं। इसके बाद वे मेक्सिको भी जाएंगे जहां वे स्वामी विवेकानंद और महाराष्ट्र में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे (Pandurang Sadashiv Khankhoje) की मूर्ति का अनावरण करेंगे।
कौन थे पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे ?
पाण्डुरंग खानखोजे को मेक्सिको में हरित क्रांति के जनक के तौर पर जाने जाते हैं। पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे के बारे में विस्तार से जानकारी उनकी बेटी सावित्री सहाय (Savitri Sawhney) द्वारा लिखी गयी आत्मकथा से प्राप्त होती है।
‘पाण्डुरंग खानखोजे की पहचान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, कृषि वैज्ञानिक और इतिहासकार के तौर पर होती है।
श्री खानखोजे का जन्म 7 नवम्बर 1883 को वर्धा, महाराष्ट्र में हुआ था। वर्धा में ही उन्होंने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए वह नागपुर चले गए। तब तक वह महान स्वतंत्रता सेनानी बालगंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी विचारों से काफी प्रभावित हो चुके थे।
1900 के करीब वह समुद्री मार्ग से संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पहुंचे। कृषि की पढ़ाई के लिए उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए गठित गदर पार्टी के संस्थापकों में एक नाम पाण्डुरंग खानखोजे का भी था। इसकी स्थापना 1914 में अप्रवासी भारतीयों ने की थी, जिसमें ज्यादातर पंजाब के लोग थे।
अमेरिका प्रवास के दौरान खानखोजे की मुलाकात भारतीय बुद्धजीवी लाला हर दयाल से हुई, जो स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी (Stanford University) में पढ़ाते थे।
कैलिफोर्निया की माउंट तमालपाइस सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान खानखोजे की मुलाकात मेक्सिको के कई लोगों से हुई।
मेक्सिकन नागरिकों ने 1910 की क्रांति में तानाशाही शासन को उखाड़ फेंका था, जिससे खानखोजे बहुत प्रभावित थे।
खानखोजे ने पेरिस में भीकाजी कामा और रूस में ब्लादिमीर लेनिन (Vladimir Lenin) समेत कई नेताओं से मुलाकात कर भारत की आजादी के लिए समर्थन मांगा। इस वजह से उन पर यूरोप में निर्वासन का खतरा मंडराने लगा।
बाद में उन्होंने मेक्सिको में शरण ली। उन्हें वहां के राष्ट्रीय कृषि विद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई। यहां उन्होंने मक्का, गेहूं, दाल और रबर पर कई शोध किए। साथ ही उन्होंने ठंड और सूखा प्रतिरोधी कृषि उपज की किस्मों का विकास किया।
मेक्सिको में उन्होंने किसानों के लिए मुफ्त कृषि विद्यालय की शुरूआत की थी। उनके ये प्रयास मेक्सिको में हरित क्रांति की वजह बने।
बाद में भारत में हरित क्रांति के जनक अमेरिकी कृषि विज्ञानी डॉ नॉर्मन बोरलॉग खारखोजे द्वारा तैयार की गई मेक्सिकन गेहूं की किस्म पंजाब लेकर आए। खानखोजे मेक्सिको में एक कृषि वैज्ञानिक के रूप में प्रतिष्ठित थे।
प्रसिद्ध मेक्सिकन कलाकार डिएगो रिवेरा ने अपने भित्ति चित्रों (Murals) में खानखोजे को चित्रित किया था।
भारत की आजादी के बाद वह भारत वापस लौटे। 22 जनवरी 1967 को नागपुर में उनका निधन हुआ था।