कर्नाटक हाई कोर्ट ने UIDAI को NIA के साथ आरोपियों की जानकारी साझा करने का निर्देश दिया
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को 12 बांग्लादेशी नागरिकों, जिनमें से कुछ पहले से ही सामूहिक बलात्कार के मामले में दोषी हैं, द्वारा आधार कार्ड हासिल करने के लिए दी गयी सूचनाएं और दस्तावेज प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। 12 बांग्लादेशी नागरिकों में से कुछ मानव तस्करी और अवैध आव्रजन मामलों में ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमे का सामना कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा दायर एक याचिका की अनुमति देते हुए UIDAI को निर्देश जारी किए।
NIA ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था क्योंकि UIDAI ने मांगी गई जानकारी और दस्तावेज देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 की धारा 33 में कहा गया है कि गोपनीय जानकारी / प्रमाणीकरण दस्तावेज, जिन्हें डिस्क्लोज करने से प्रतिबंधित किया गया है, केवल अदालत द्वारा और वह भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (उससे नीचे का नहीं) के आदेश से कुछ मामलों में डिस्क्लोज किया जा सकता है।
UIDAI को सभी दस्तावेज और जानकारी सौंपने का निर्देश देते हुए, अदालत ने NIA को यह भी निर्देश दिया कि वह इस तरह के विवरण का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए अपराधों की जांच और अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए न करे।
अदालत ने यह भी बताया कि आधार अधिनियम, 2016, केवल अदालत को गोपनीय विवरण प्रदान करने की अनुमति देने से पहले UIDAI का पक्ष सुनने के लिए अनिवार्य करता है।
साथ ही अधिनियम में इस तरह का प्रावधान नहीं है कि जिस व्यक्ति के बारे में जानकारी मांगी गयी है उसका भी पक्ष सुनाया जाये। अदालत ने कहा कि जिन व्यक्तियों की जानकारी मांगी गयी है उसका पक्ष सुनने की दलील ठीक वैसा ही है जैसा कि मलेरिया रोधी दवा इस्तेमाल करने से पहले मच्छर दलील दे कि उसकी सहमति ली जाये।
बंगलुरु की राममूर्तिनगर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, विदेशी अधिनियम और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के तहत कथित रूप से बांग्लादेशी लड़कियों को रोजगार के झूठे वादे पर भारत लाने के आरोप में मामला दर्ज किया है।
इन लड़कियों को शुरू में कोलकाता भेजा गया जहां फर्जी आधार कार्ड बनाए गए और उसके बाद उन्हें देश के अन्य हिस्सों में वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया गया। इसके बाद, गृह मंत्रालय ने जुलाई 2021 में अपराधों की गंभीरता और उनके अंतरराष्ट्रीय और अंतर-राज्यीय प्रभावों को देखते हुए मामले को एनआईए को सौंपा था।