अनाथ और परित्यक्त बच्चों की पहचान के लिए जिला स्तरीय सर्वेक्षण की सिफारिश

एक संसदीय समिति ने अनाथ और परित्यक्त बच्चों (orphaned and abandoned children) की सक्रिय रूप से पहचान करने के लिए जिला स्तरीय सर्वेक्षण की सिफारिश की है। कार्मिक, लोक शिकायत और विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा हाल ही में एक रिपोर्ट “अभिभावकत्व और दत्तक ग्रहण कानूनों की समीक्षा” (Review of Guardianship and Adoption Laws) को संसद में पेश किया गया था।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला स्तर के सर्वेक्षण के माध्यम से अनाथ/छोड़े दिए गए बच्चों की संख्या की सही तस्वीर प्राप्त करना महत्वपूर्ण है और डेटा को नियमित आधार पर अपडेट करने की आवश्यकता है।

यह सुझाव दिया गया है कि हर जिले में जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक मासिक बैठक आयोजित की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सड़कों पर भीख मांगने वाले अनाथ और परित्यक्त बच्चों को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाए और उन्हें जल्द से जल्द गोद लेने के लिए उपलब्ध कराया जाए।

रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2021 तक गोद लेने के इच्छुक 27,939 माता-पिता चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) में पंजीकृत थे, जो वर्ष 2017 के लगभग 18,000 की संख्या से काफी अधिक है। इसकी तुलना में, चाइल्डकेयर में रहने वाले कुल 6,996 अनाथ, परित्यक्त बच्चे थे। गोद लेने योग्य माने जाने वाले संस्थानों में से केवल 2,430 को ही बाल कल्याण समितियों द्वारा गोद लेने के लिए “कानूनी रूप से मुक्त” घोषित किया गया था।

गोद लेने के लिए प्रतीक्षा समय भी पिछले पांच वर्षों में एक वर्ष से बढ़कर तीन वर्ष हो गया है।

वर्ष 2021-2022 में गोद लिए गए बच्चों की कुल संख्या केवल 3,175 थी। आईएचएच ह्यूमैनिटेरियन एंड सोशल रिसर्च केंद्र (INSAMER) की 2020 अनाथ रिपोर्ट के अनुसार अनुमानित 3.1 करोड़ अनाथ बच्चों में से देश में केवल 2,430 बच्चे गोद लेने के लिए कानूनी रूप से मुक्त पाए गए हैं।

विशेषज्ञ इसे सरकार के सुरक्षा नेटवर्क में देखभाल की जरूरत वाले अधिक बच्चों को लाने में विफलता मानते हैं। इसलिए वे जिला स्तरीय सर्वेक्षण के सुझाव का स्वागत करते हैं, लेकिन सावधानी बरतने की आवश्यकता का आह्वान करते हैं।

बच्चों को सुरक्षा नेटवर्क की जरुरत

विशेषज्ञों के मुताबिक हमारा उद्देश्य अधिक बच्चों को ट्रैक करने और उन्हें गोद लेने के लिए लाने का नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चों को सुरक्षा नेटवर्क से बाहर जाने से रोकने का होना चाहिए अन्यथा गोद दिए जाने के दर से गरीब लोग अपने बच्चों को इन संस्थाओं में नहीं छोड़ेंगे ।

हमें एक बच्चे के लिए एक परिवार प्रदान करना है, न कि इसके विपरीत माहौल।

लोकसभा में सरकार के जवाब के अनुसार, 30 सितंबर, 2021 तक किशोर न्याय अधिनियम के तहत 6,525 बाल देखभाल संस्थान पंजीकृत हैं। लेकिन इनमें गोद लेने योग्य के रूप में पहचाने गए बच्चे केवल 6,996 हैं

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2018 में अपनी रिपोर्ट में चाइल्डकैयर संस्थानों के सर्वे में पाया गया कि इन घरों में देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले कुल 3.7 लाख बच्चों में से, सिंगल माता-पिता वाले 32 प्रतिशत यानी 1.2 लाख बच्चे थे जबकि बिना माता-पिता वाले बच्चे कुल में से सिर्फ 11% या 41,730 थे।

चाइल्डकेयर संस्थानों में बच्चों के आने की वजह

बाल देखभाल संस्थाओं में बच्चे विभिन्न कारणों से रह रहे थे जैसे आश्रय या सुरक्षा या देखभाल के लिए या किसी भी कारण से उनका परिवार उनकी देखभाल करने में सक्षम नहीं है।

इनका उपयोग कमजोर परिवारों द्वारा छात्रावास या रिक्त स्थान के रूप में अधिक किया जाता है जहां शिक्षा, भोजन, आश्रय और कपड़ों की पहुंच होती है।

बच्चों को पालन-पोषण करने वाले परिवारों से जोड़ने के लिए एक ऐसे बदलाव की आवश्यकता है जो “कस्टोडियल ” की जरूरतों जैसे कि भोजन और आश्रय से परे हो और उनके अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करे।

कई बच्चे माता-पिता की देखभाल में रह रहे हैं, लेकिन उन्हें सर्वोच्च देखभाल की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। माता-पिता अपने ही बच्चों को गाली देते हैं या उनकी उपेक्षा करते हैं।

हमें बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा, शोषण और उपेक्षा के प्रति जीरो टॉलरेंस रखना चाहिए और फिर उनके पास पर्याप्त सुरक्षा नेटवर्क होना चाहिए ताकि उन्हें उनकी जरूरत की मदद मिल सके। ऐसा करने में विफलता भी दुर्व्यवहार की ओर ले जाती है, जिसे वर्ष 2015 में गोद लेने के केंद्रीकरण के द्वारा अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया था।

(Source: The Hindu)

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