सित्तनवासल चित्रकारी का संरक्षण
हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुर्लभ सित्तनवासल चित्रकारी (Sittanavasal paintings) तक आम लोगों के अप्रतिबंधित पहुंच और तत्वों के से संपर्क के कारण यह धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। नुकसान को रोकने के लिए, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इलेक्ट्रॉनिक टिकटिंग शुरू की है जो आगंतुक संख्या को ट्रैक करने में मदद करती है।
तमिलनाडु के पुदुकोट्टई जिले का एक छोटा सा गाँव ई.पू. के कुछ वर्ष पहले से लेकर अगले 1,000 वर्षों तक जैन प्रभाव का एक प्रमुख केंद्र था। सित्तनवासल नाम का उपयोग उस गांव और पहाड़ी के लिए किया जाता है जिसमें अरिवर कोविल/Arivar Kovil (अरिहत– जैन जिन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की थी, का मंदिर), एझादिपट्टम (17 पॉलिश रॉक बेड के साथ एक गुफा), मेगालिथिक दफन स्थल और नवचुनई तरन (लघु पहाड़ी झील) शामिल हैं।
यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा प्रशासित स्थल है।
तमिलनाडु में सित्तनवासल ही एक ऐसा स्थान है जहां हम पांड्यन काल की पेंटिंग्स देख सकते हैं। कम से कम तीन-चौथाई कला पहले ही क्षतिग्रस्त हो चुकी है, इसलिए भविष्य की पीढ़ियों के लिए इस स्थल की रक्षा करना महत्वपूर्ण है।
गर्भगृह की छत और अरिवर कोविल के अर्ध मंडपम पर कलाकृति चौथी से छठी शताब्दी के बाद के अजंता गुफा चित्रों का एक प्रारंभिक उदाहरण है, जिसे फ्रेस्को-सीको तकनीक (दीवार पर गीला प्लास्टर का उपयोग) का उपयोग किया जाता है।
छत की पेंटिंग में ‘भव्यास’/bhavyas (मोक्ष या आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करने के लिए काम करने वाली श्रेष्ठ आत्माएं) कमल से भरे कुंड में आनंद लेते हुए देखा जा सकता है। आज इसका अधिकांश भाग धूमिल हो गया है।