बिहार में आदमखोर बाघ को गोली मारी गई-क्या हैं नियम?

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बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में विगत कई दिनों में नौ इंसानों को मारने वाले आदमखोर बाघ ‘टाइगर टी-104’ को वन अधिकारियों ने गोली मार दी।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और राज्य के अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक वन-सह-वन्यजीव वार्डन ने वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (VTR) के आसपास रहने वाले लोगों के विरोध के बाद इस बाघ को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी किया था।

उल्लेखनीय है कि वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WLPA) की अनुसूची 1 के तहत सूचीबद्ध होने के बाद से बाघों के मारे जाने के मामले में सवाल उठते रहे हैं।

NTCA ने बाघों और तेंदुओं को ‘मानव जीवन के लिए खतरनाक’ (dangerous to human life) घोषित करने के लिए स्टैंडिंग ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SoP) निर्धारित की है, यदि ये मानव जीवन के लिए खतरा पैदा करते हैं।

वर्ष 2007 में निर्धारित SoP (और 2019 में संशोधित) में कहा गया है कि जो जानवर ‘मानव जीवन के लिए खतरनाक’ हो गए हैं, उन्हें वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 11 में प्रदान किए गए वैधानिक प्रावधानों के अनुसार समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

बाघ के साथ-साथ तेंदुए को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत वर्गीकृत किया गया है, जिसमें उक्त अधिनियम की धारा 9 (1) के तहत शिकार के खिलाफ उच्चतम वैधानिक संरक्षण है।

ऐसी प्रजातियों को मारा जा सकता है यदि वे मानव जीवन के लिए खतरनाक हो जाती हैं या इतनी अक्षम / रोगग्रस्त हो जाती हैं कि इनकी रिकवरी नहीं हो सकती हैं।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 11 (1) (A) के तहत, केवल राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन के पास ऐसे जानवरों के मारने की अनुमति देने का अधिकार है जो मानव जीवन के लिए खतरनाक हो जाते हैं या विकलांग या रिकवरी से परे रोगग्रस्त हो जाते हैं।

हालांकि, वैधानिक आवश्यकता के अनुसार, राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन को ऐसे जानवरों को मारने से पहले ऐसा करने के कारणों को लिखित रूप में बताना होगा।

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