जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन से कार्बन डेटिंग तकनीक कैसे प्रभावित हो रही है?

जर्नल नेचर में प्रकाशित एक हालिया शोध रिपोर्ट के मुताबिक, पुरातत्वविदों को किसी प्राचीन वस्तु की उम्र जानने के लिए अब अन्य तकनीकों पर भरोसा करना होगा क्योंकि कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions ) हवा में कार्बन आइसोटोप की संरचना को बदलना जारी रखे हुआ है। मानव-जनित कार्बन उत्सर्जन को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग में इसके योगदान के लिए बार-बार जिम्मेदार ठहराया गया है। लेकिन अब पुरातत्व अध्ययन भी प्रभावित हो रहा है

क्या कहता है नया अध्ययन?

वर्ष 1952 और 1962 के बीच, परमाणु हथियारों के परीक्षण ने ‘बम कार्बन’ की एक स्पाइक जारी की, जिसने हवा में कार्बन -14 (carbon-14) की मात्रा को जल्दी से दोगुना कर दिया। तब से, उस कार्बन-14 को जीवित चीजों और महासागरों द्वारा धीरे-धीरे अवशोषित कर लिया गया है।

दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन के जलने से CO2 तेजी से उत्सर्जित हो रहा है लेकिन उसमें कार्बन-14 नहीं है।

आधुनिक सामग्रियों में कार्बन -14 अनुपात अब पूर्व-औद्योगिक युग (pre-industrial times) के समान है।

चूंकि जीवाश्म ईंधन अभी भी जलाया जा रहा है, इसलिए हवा में कार्बन -14 का अनुपात और भी कम होता जाएगा।

वैज्ञानिकों के अनुसार, आधुनिक वस्तुएं अब रेडियोकार्बन डेटिंग के नजरिये से बीसवीं शताब्दी की शुरुआत की वस्तुओं की तरह दिखती हैं। यह ट्रेंड जल्द ही यह बताना मुश्किल कर सकती है कि कोई चीज 1,000 साल पुरानी है या आधुनिक।

इसका मतलब यह भी है कि फोरेंसिक वैज्ञानिक अब हाथीदांत, प्राचीन वस्तुओं और कलाओं की उम्र को बताने के लिए रेडियोकार्बन फिंगरप्रिंट (radiocarbon fingerprints) का उपयोग करने में सक्षम नहीं होंगे।

कार्बन-डेटिंग तकनीक (Carbon-dating techniques)

कार्बन-डेटिंग तकनीक (Carbon-dating techniques) इस तथ्य पर निर्भर करती है कि हवा में कार्बन के कई समस्थानिक हैं। स्थिर कार्बन-12 सबसे आम है। लेकिन रेडियोधर्मी कार्बन-14 (radioactive carbon-14) की एक छोटी मात्रा भी होती है, जो मुख्य रूप से तब उत्पन्न होती है जब कॉस्मिक किरणें वायुमंडल के साथ परस्पर रियेक्ट करती हैं।

कार्बन-14 का अनुपात समय के साथ स्वाभाविक रूप से बदलता रहता है। जीवित चीजें दोनों प्रकार के कार्बन को अवशोषित करती हैं। उनके मरने के बाद, इन दोनों समस्थानिकों की सापेक्ष मात्रा में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है क्योंकि रेडियोधर्मी कार्बन -14 (carbon-14) 5,700 वर्षों की अर्द्ध आयु साथ क्षय हो जाता है।

किसी वस्तु में कितना कार्बन-14 बचा है, इसे मापकर, शोधकर्ता लकड़ी, कपड़े या हड्डी जैसे कार्बनिक पदार्थों की आयु निर्धारित कर सकते हैं, जो लगभग 55,000 साल पुराने तक हो सकते हैं।

आमतौर पर, वस्तु में कार्बन-14 का अनुपात जितना कम होता है, सामग्री उतनी ही पुरानी होती है।

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