केंद्र सरकार दशकों पुराने कॉफी कानून की जगह नया कानून ला रही है
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय कॉफी अधिनियम, 1942 को नए कॉफी (संवर्धन और विकास विधेयक), 2022 से बदलने की योजना बना रहा है, जिसे संसद के मानसून सत्र के दौरान पेश किया जा सकता है। कॉफी अधिनियम, 1942 को पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, संघर्षरत भारतीय कॉफी उद्योग को युद्ध के कारण हुई आर्थिक मंदी से बचाने के लिए पेश किया गया था।
कॉफी अधिनियम ने एक पूलिंग प्रणाली की शुरुआत की, जहां प्रत्येक उत्पादक को अपनी पूरी फसल को बोर्ड द्वारा प्रबंधित एक अधिशेष पूल में वितरित करने की आवश्यकता थी, इसके अलावा घरेलू उपयोग और बीज उत्पादन के लिए कम मात्रा में रखने की अनुमति दी गई थी।
बाद में कई संशोधनों के द्वारा बोर्ड के अधिकार को कम कर दिया गया , और 1996 में, पूलिंग सिस्टम को समाप्त कर दिया गया था। इसके बाद उत्पादकों को सीधे प्रसंस्करण फर्मों को बेचने की अनुमति दी गई । बाद में कॉफी बाजार को पूरी तरह से नियंत्रणमुक्त कर दिया गया और उत्पादकों को मुक्त बाजार का सामना करना पड़ा।
नया कानून अब मुख्य रूप से भारतीय कॉफी की बिक्री और खपत को बढ़ावा देने से संबंधित है, जिसमें कम सरकारी प्रतिबंधों के साथ ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म शामिल हैं। इसका उद्देश्य भारतीय कॉफी उद्योग को “वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं” के साथ तालमेल बनाने और अधिक आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान को प्रोत्साहित करना है।
हालाँकि कॉफी बोर्ड का मार्केटिंग पर सीमित नियंत्रण है, लेकिन निर्यातकों को अभी भी इस वैधानिक संस्था से प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है ।
भारत में कॉफी का इतिहास
भारतीय कॉफी की गाथा कर्नाटक में ‘बाबा बुदन गिरिस’ (Baba Budan Giris) पर अपने आश्रम के प्रांगण में प्रसिद्ध संत बाबा बुदान द्वारा 1600 ईस्वी के दौरान ‘मोचा’ (Mocha) के ‘सात बीज’ के रोपण के साथ शुरू हुई। काफी समय तक, ये पौधे एक बगीचे में जिज्ञासा के विषय बने रहे और धीरे-धीरे बैकयार्ड में इसे उगाये जाने लगा।
18वीं शताब्दी के दौरान कॉफी के वाणिज्यिक बागान शुरू किए गए थे, जिसका श्रेय दक्षिण भारत में प्रतिकूल वन क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने में ब्रिटिश उद्यमियों की सफलता को जाता है। तब से, भारतीय कॉफी उद्योग ने तेजी से प्रगति की है और दुनिया के कॉफी मानचित्र में एक अलग पहचान अर्जित की है।
भारत में कॉफी पश्चिमी और पूर्वी घाटों के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में मोटी प्राकृतिक छाया की छतरी के नीचे उगाई जाती है। यह दुनिया के 25 जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में से एक है।
कॉफी, क्षेत्र की अनूठी जैव-विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देती है और दूरस्थ, पहाड़ी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भी जिम्मेदार है।
कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारतीय राज्य देश के कुल कॉफी उत्पादन में 80 प्रतिशत का योगदान करते हैं।