दिल्ली में सर्विस मामले पर केंद्र सरकार का अध्यादेश
भारत सरकार ने 19 मई को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्रशासन में सेवाओं पर दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) की शक्तियों का विस्तार करते हुए एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें अनिवार्य रूप से दिल्ली में तैनात नौकरशाहों को स्थानांतरित करने और नियुक्त करने की शक्ति शामिल है।
प्रमुख तथ्य
यह अध्यादेश भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सर्वसम्मत फैसले को निष्प्रभावी कर देगा, जिसने दिल्ली सरकार को राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं पर अधिकार दिया था।
अध्यादेश में एक नया वैधानिक प्राधिकरण का प्रस्ताव किया गया है – राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (National Capital Civil Service Authority: NCCSA) – जिसका अध्यक्ष दिल्ली के निर्वाचित मुख्यमंत्री होंगे जबकि मुख्य सचिव और गृह विभाग के प्रमुख सचिव इसके सदस्य होंगे।
NCCSA ट्रांसफर पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों के बारे में एलजी को सिफारिशें करेगा।
NCCSA द्वारा तय किए जाने वाले सभी मामले उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से तय किए जाएंगे।
पूर्व में भी फैसले को निष्प्रभावी किया गया है
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय के किसी फैसले को रद्द करने या उलटने के लिए सरकार के स्तर पर कार्रवाई की गई है, या तो अध्यादेश की घोषणा के माध्यम से या संसद में एक कानून पारित करके।
शाहबानो मामला, वोडाफोन केस, शत्रु संपत्ति, जल्लीकट्टू जैसे मामलों सहित सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय को अध्यादेश के माध्यम से या संसद में कानून पारित कर निष्प्रभावी किया जा चुका है।
ट्रिब्यूनल मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को निष्प्रभावी बनाने के लिए ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल 13 फरवरी, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया था। सत्र के अंत में बिल लंबित रहने के कारण अप्रैल 2021 में इसी तरह के प्रावधानों के साथ एक अध्यादेश जारी किया गया था।
वास्तव में, दोराइराजन मामले (1950) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करने के लिए पहला संवैधानिक संशोधन पारित किया गया था।
सच यह है कि राष्ट्रपति के पास उन सभी विषयों पर अध्यादेश जारी करने की शक्ति है जिन पर संसद कानून बना सकती है।
पृथ्वी कॉटन मिल्स (1969) मामले में, वसूले गए कर को अदालत द्वारा अवैध रूप से एकत्र किया गया घोषित करने की बाद इसे जायज ठहराने के लिए रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान गुजरात विधानसभा द्वारा वेलिडेशन एक्ट पारित किया गया था
विधायी शक्ति के इस तरह के प्रयोग को सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने बरकरार रखा था।
तब न्यायालय ने स्वीकार किया था कि यह निर्विवाद है कि विधायिका पूर्वव्यापी प्रभाव (कानून बनने की तारीख से पहले से उस कानून को लागू करना) से भी वैध क़ानून पारित कर सकती है। वास्तव में, संसद किसी मामले के लंबित रहने के दौरान भी कानून बना सकती है।