आपराधिक मामलों में संसद सदस्य को गिरफ्त्तारी से उन्मुक्ति का विशेषाधिकार नहीं है: राज्यसभा सभापति
राज्यसभा के सभापति ने 5 अगस्त को कहा कि संसद सदस्यों की यह गलत धारणा है कि सत्र के दौरान जांच एजेंसियों द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती क्योंकि उन्हें विशेषाधिकार (Privileges of Parliament) प्राप्त है। विपक्षी दलों का आरोप था कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को “फ्रेम” करने के लिए सरकार द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ED), केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग किया जा रहा है। यहां तक कि सदन के सत्र में होने के बाबजूद सदस्य को गिरफ्त्तार किया गया है और सम्मन भी भेजी गयी है।
क्या था मामला?
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सभापति ने कहा कि सदस्यों के बीच एक गलत धारणा है कि सत्र के दौरान एजेंसियों द्वारा कार्रवाई के मामले में उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त है। उन्होंने कहा कि उन्होंने सभी उदाहरणों की जांच की है और संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत, सांसदों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं ताकि वे बिना किसी बाधा के अपने संसदीय कर्तव्यों का पालन कर सकें।
विशेषाधिकारों में से एक यह है कि किसी संसद सदस्य को दीवानी मामले में, सत्र या समिति की बैठक शुरू होने से 40 दिन पहले और उसके बाद 40 दिन बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
यह विशेषाधिकार पहले से ही सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 135A के तहत शामिल है।
हालांकि, आपराधिक मामलों में, सांसद एक आम नागरिक से अलग नहीं हैं। इसका मतलब है कि एक सांसद को सत्र के दौरान या अन्यथा किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार होने से कोई उन्मुक्ति प्राप्त नहीं है।
उन्होंने 1966 में डॉ. जाकिर हुसैन द्वारा दिए गए एक फैसले को याद किया जिसमें कहा गया था, संसद के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं ताकि वे अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें। ऐसा ही एक विशेषाधिकार है गिरफ्तारी से उन्मुक्ति जब संसद का सत्र चल रहा हो। गिरफ्तारी से मुक्ति का यह विशेषाधिकार केवल दीवानी मामलों तक ही सीमित है और इसे आपराधिक कार्यवाही मामले में लागू नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह कि आपराधिक मामलों में सांसदों के विशेषाधिकार नहीं होते हैं। संसद सत्र के दौरान सदस्यों को ऐसे मामलों में गिरफ्तार से छूट नहीं है इसलिए वे जांच एजेंसियों द्वारा जारी समन से बच नहीं सकते हैं।
क्या है संसदीय विशेषाधिकार?
लोकसभा (LS) सचिवालय का कहना है कि “विशेषाधिकार’ शब्द का अर्थ संसद के प्रत्येक सदन और उसकी समितियों द्वारा सामूहिक रूप से और प्रत्येक सदन के सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्राप्त कुछ अधिकारों और उन्मुक्तियों से है, जिसके बिना वे अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से संचालित नहीं कर सकते हैं” ।
संसदीय विशेषाधिकार का उद्देश्य संसद की स्वतंत्रता, अधिकार और गरिमा की रक्षा करना है। व्यक्तिगत सदस्यों द्वारा उनका उपयोग किया जाता है, क्योंकि सदन अपने सदस्यों की सेवाओं के निर्बाध उपयोग के बिना अपने कार्य नहीं कर सकता है।
विशेषाधिकार सदस्यों को समाज के प्रति दायित्वों से छूट नहीं देते हैं जो अन्य नागरिकों पर लागू होते हैं। संसद के विशेषाधिकार कानूनों के लागू होने के मामले में एक सांसद को एक सामान्य नागरिक से अलग स्तर पर नहीं रखते हैं, जब तक कि ऐसा करने के लिए संसद के हित में अच्छे और पर्याप्त कारण न हों।
संसदीय विशेषाधिकार मुख्यतः दो वर्गों में बांटा गया हैं। ये हैं- व्यक्तिगत अधिकार और सामूहिक अधिकार। व्यक्तिगत अधिकारों का उपयोग संसद द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। जबकि सामूहिक अधिकार संसद या राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों को प्राप्त होते हैं।
किसी संसद सदस्य को प्राप्त व्यक्तिगत विशेषाधिकारों में – सत्र के दौरान, सत्र आरंभ होने के 40 दिन पहले और सत्र समाप्ति के 40 दिन बाद तक दीवानी मामलों में सदस्यों को गरफ्तारी से उन्मुक्ति दी गयी हैं। व्यक्तिगत विशेषाधिकारों में संसद में सदस्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि शामिल हैं।
सभापति/अध्यक्ष को किसी आपराधिक आरोप या आपराधिक मामले में किसी सदस्य की गिरफ्तारी, निरोध, दोषसिद्धि, कारावास और रिहाई की तत्काल सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी सदस्य को संसद में उसके द्वारा कही गई किसी भी बात या उसके द्वारा दिए गए किसी भी वोट के संबंध में किसी भी कार्यवाही से छूट प्रदान करता है। इसके अलावा, इस तरह के मामले में किसी भी अदालत में कार्यवाही से उन्मुक्ति भी शामिल है।
सामूहिक विशेषाधिकारों के अंतर्गत सदन की रिपोर्ट, वाद-विवाद कार्यवाहियों आदि मामलें में अन्य के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाना है। इ
यदि कोई व्यक्ति विशेषाधिकार के उल्लंघन या सदन की अवमानना का दोषी पाया जाता है, तो व्यक्ति को या तो कारावास से दंडित किया जा सकता है, या चेतावनी या फटकार दी जा सकती है।
प्रत्येक सदन और उसके सदस्यों और उसकी समितियों को उपलब्ध शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों को परिभाषित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 105(3) के अनुसरण में संसद द्वारा अब तक कोई कानून नहीं बनाया गया है।