असम के “मोइदम्स टीला-शवाधान प्रणाली” को यूनेस्को-विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया

असम के “मोइदम्स – अहोम राजवंश की टीला-शवाधान प्रणाली” (Moidams – the Mound-Burial System of the Ahom Dynasty) को आधिकारिक तौर पर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।

यह घोषणा 26 जुलाई, 2024 को नई दिल्ली में चल रहे विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र के दौरान की गई। यह भारत की 43वीं और असम की तीसरी धरोहर है जिसे विश्व धरोहर सूची (World Heritage Lis) में शामिल किया गया है।

भारत अब यूनेस्को विश्व धरोहर संपत्तियों की सबसे अधिक संख्या के मामले में दुनिया भर में छठे स्थान पर है।

असम के चराईदेव मोइदम्स (Charaideo Moidams) सांस्कृतिक श्रेणी में विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला पूर्वोत्तर क्षेत्र का पहला स्थल है।

यह असम की तीसरी विश्व धरोहर साइट है। इससे पहले काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और मानस वन्यजीव अभयारण्य को 1985 में प्राकृतिक श्रेणी में विश्व धरोहर साइट सूची में शामिल किया गया था।

चराईदेव मोइदम्स असम के ताई-अहोम राजवंश की 700 साल पुरानी एक अनूठी टीला-शवाधान प्रणाली है।

मिस्र के पिरामिडों की तरह, मोइदम अहोम शाही परिवार के सदस्यों के मिट्टी से बने शवाधान टीले हैं।

मोइदम पूर्वी असम में पटकाई पर्वत श्रेणी की तलहटी में स्थित है। इन शवाधान टीलों को ताई-अहोम द्वारा पवित्र माना जाता है और ये उनकी अनूठी अंत्येष्टि प्रथाओं को दर्शाते हैं।

ताई-अहोम लोग 13वीं शताब्दी में असम पहुंचे और चराइदेव को अपना पहला शहर और शाही शवाधान की जगह के रूप में स्थापित किया।

13वीं से 19वीं शताब्दी ई. तक, 600 वर्षों तक, ताई-अहोम ने पहाड़ियों, जंगलों और पानी जैसे प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके इसे पवित्र क्षेत्र बनाने के लिए मोइदम या “आत्मा के लिए घर” का निर्माण किया।

वे इसमें अहोम शासकों के पार्थिव अवशेषों को उनके सामान के अलावा संरक्षित करते हैं।

अहोमों ने 18वीं शताब्दी के बाद दाह संस्कार की हिंदू पद्धति को अपनाया और दाह संस्कार के बाद बची हुई अस्थियों और राख को चराइदेव स्थित मोइदम में दफनाना शुरू कर दिया।

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