अंतरिक्ष यात्रियों पर माइक्रोग्रैविटी का प्रभाव
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर ले जाने वाले अंतरिक्ष यान में तकनीकी खराबी के कारण अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को अंतरिक्ष में लंबा समय बिताना पड़ा है। हाल में NASA ने कहा कि उन्हें पृथ्वी पर लौटने के लिए फरवरी 2025 तक इंतजार करना पड़ सकता है।
हालांकि इस अभूतपूर्व स्थिति में, विलियम्स और विल्मोर खतरे में नहीं हैं। ISS उन्हें अगले छह महीनों तक आराम से रख सकता है।
वर्तमान में, अंतरिक्ष स्टेशन पर सात अन्य अंतरिक्ष यात्री हैं। ISS, लगभग 400 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली एक स्थायी अंतरिक्ष प्रयोगशाला है। नवंबर 2000 से हमेशा वहां कोई न कोई अंतरिक्ष यात्री रहा है।
NASA अंतरिक्ष में मानव शरीर पर प्रभावों का अध्ययन करने के लिए अपने अंतरिक्ष यात्रियों को लम्बे समय तक तैनात कर रहा है। ISS के लिए उड़ान भरने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री अब ऐसे प्रयोगों का हिस्सा बनने के लिए स्वेच्छा से भाग ले सकते हैं।
माइक्रोग्रैविटी
नासा अंतरिक्ष यात्रियों के अंतरिक्ष में अल्प (3.5 महीने तक), रेगुलर (आठ महीने तक) और एक्सटेंडेड प्रवास (आठ महीने से अधिक) के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए एक कार्यक्रम चला रहा है।
गौरतलब है कि मानव प्रतिरक्षा प्रणाली पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल (gravitational force) के तहत विकसित हुई है। नतीजतन, अंतरिक्ष के माइक्रोग्रैविटी वातावरण में, इम्यून का कार्य बदल जाता है।
माइक्रोग्रैविटी वह स्थिति है जिसमें लोग या वस्तुएं भारहीन प्रतीत होती हैं। माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव तब देखे जा सकते हैं जब अंतरिक्ष यात्री और वस्तुएं अंतरिक्ष में तैरती हैं। “माइक्रो” का अर्थ है “बहुत छोटा”, इसलिए माइक्रोग्रैविटी उस स्थिति को संदर्भित करता है जहां गुरुत्वाकर्षण बल बहुत कम होता है।
माइक्रोग्रैविटी को कभी-कभी “जीरो ग्रैविटी” कहा जाता है, लेकिन यह भ्रामक है क्योंकि सभी जगह हल्की या अधिक ग्रेविटी मौजूद है।
रिपोर्टों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर माइक्रोग्रैविटी के लंबे समय तक संपर्क के कारण, अंतरिक्ष यात्रियों कोस्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है; जैसे हड्डियों के घनत्व में कमी, दृष्टि संबंधी समस्याओं का अनुभव होना, डीएनए क्षति के कारण कैंसर का भी अधिक खतरा होना, आदि।